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उसी का मंदिर है।' देसी घोड़े पर पाट के बोझ लादे हुए बनियों को आते देख कर हिरामन ने टप्पर के परदे को गिरा दिया।
44
किस तरह वो असोज के शुरू में दूसरी औरतों के साथ गरबा नाचा करती थी और भाबी के सर पर रखे हुए घड़े के सुराख़ों में से रौशनी फूट फूट कर दालान के चारों कोनों को मुनव्वर कर दिया करती थी।
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अब तो गौरी उसकी बातों का उत्तर न दे सकी।
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पिछले साल ही उसने अपनी गाड़ी बनवाई है।
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उनमें कुछ नाम हैं—शेक्सपियर, टॉल्स्टाय, गोर्की और टैगोर। मैं इन सबको हेच समझता हूँ। ”
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फिर जऊन चीज लागी मैं मांग न लईहौं सरकार से?
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गांधी मैदान की रेलिंग के सहारे हज़ारों लोग खड़े देख रहे थे।
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दिन बीत जाते हैं।
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मैं उसे बचाऊंगी, बचाऊंगी, अवश्य बचाऊंगी।" जयगोपाल बाबू भावावेश में आकर बोले- "तो तुम यहीं रहो, मेरे घर अब कदापि मत आना।" शशि ने उसी क्षण तपाक से कहा- "तुम्हारा घर कहां से आया?
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उसने कपड़े की गठरी से तीन मीठी रोटियाँ निकाल कर कहा,' खा ले एक-एक करके।
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नदी नहीं, खेत है। ....ये झोंपड़े हैं या हाथियों का झुण्ड? ताड़ का पेड़ किधर गया?
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यह बात उसके पिता को भी माननी पड़ेगी।
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कौन-सा सौख-मौज दिया है उसके मर्द ने?
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नत्थासिंह अपनी सफ़ेद दाढ़ी में उँगलियों से कंघी करता हुआ बोला, “चार पैसे कमाने के यही तो दिन हैं। ”
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उसने कहा, अच्छा है, फिर एक बार विवाह का साज सजाया जाए, रोशनी जले, देश-विदेश के लोगों को निमंत्रण दिया जाए, उसके बाद तुम वर के मौर को पैरों से कुचलकर दल-बल लेकर सभा से उठकर चले आओ! किंतु जो धारा अश्रु-जल के समान शुभ्र थी, वह राजहंस का रूप धारण करके बोली, जिस प्रकार मैं एक दिन दमयंती के पुष्पवन में गई थी मुझे उसी प्रकार एक बार उड़ जाने दो-मैं विरहिणी के कानों में एक बार सुख-संदेह दे आऊं।
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मैं भी उसके लिए अपने प्राणों का बलिदान दे सकता हूँ।
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लौटकर विनु दादा ने कहा, बुरी नहीं है जी! असली सोना है।
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यह भी मेरे बौड़मपन में दाखिल है।
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तो दुहे कौन?
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मैंने उसे समझाते हुए कहा, “तुम्हारे पास खाने-पीने की चीज़ों की छपी हुई लिस्ट होगी, वह ले आओ। ” “ अभी लाता हूँ जी,” कहकर वह सामने की दीवार की तरफ़ चला गया और वहाँ से एक गत्ता उतार लाया।
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बोल नहीं सकता था।
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चंपिया ने छींट की साड़ी पहनी और बिरजू बटन के अभाव में पैंट पर पटसन की डोरी बँधवाने लगा।
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“शेक्सपियर सिर्फ़ एक वार्ड था, ” दो कश खींचकर उसने फिर कहना आरम्भ किया, “ और अगर मर्लोवाली कहानी सच है, तो इस बात में ही सन्देह है कि शेक्सपियर शेक्सपियर था।
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क़मीस भी ख़राब हो रही थी।
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भोंपे से आवाज़ आ रही थी- बैरगाछी, कुसियार और जलालगढ़ जाने वाली यात्री एक नम्बर प्लेटफार्म पर चले जाएं।
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और मैंने न केठानी से रुकने को कहा न वह रुका, हमारे घर की नौकरी छोड़कर वह चला गया।
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माँ कह रही थी- बिना देखे कैसे किसी को कुछ कहा जा सकता है।
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भैया की जगह मैं होता, तो डंडे से बात करता।
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तन, मन और धन से देश के लिए हुई इस सेवा का साधारण जनता पर असाधारण प्रभाव पड़ा।
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वह सोने का पिंजरा तैयार करने में जुट पड़ा।
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तिरंगा झंडा फाड़ कर पैरों तले रौंद डाला गया।
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मैंने कहा, ‘ कालिका ( धोबी ) भैया आए हुए हैं।
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आह! मेरे मुँह में कालिख लगेगी, दुनिया यही कहेगी कि बाप के मर जाने पर दस साल भी एक में निबाह न हो सका।
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महुआ की पीठ पर वह भी कूदा।
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ये हुस्न, ये रानाई, ये ताज़गी ये जवानी किसी के काम आ सकती है।
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तशद्दुद अब ताजिरों की नस-नस में बस चुका है।
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फर्क़ सिर्फ़ इतना है कि तुम लोग सरकार के कुत्ते हो-हम लोगों की हड्डियाँ चूसते हो और सरकार की तरफ़ से भौंकते हो।
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सलमा तंग आ गई उस ने थोड़ी देर के बाद कोई बहाना बना कर रुख़स्त चाही और बस स्टैंड पर पहुंच गई जहां उसे ए रूट की बस पकड़ना थी।
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डाक पर क़दम रखते हुए बोला। “ होले .... .
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मैं उसके मनोविकार पढ़ने लगा, ‘ वह एक ऐसे जाल में फँसा है, जिसे वह काटना चाहता है।
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स्त्री गालियॉँ सह लेती हैं, मार भी सह लेती हैं; पर मैके की निंदा उनसे नहीं सही जाती।
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इसरानी के मुँह से निकला अरे काफ़ी की प्याली उस के हाथ से छूट कर फ़र्श पर जा गिरी।
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मगर जब यह प्रयत्न भी सफल न हुआ, तो वह रोने लगा।
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गाय खूंटे से बंधी भूखी-प्यासी हिकर रही है।
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अगर किसी जगह बात तै होने पाती तो कोई ऐसी मुश्किल पैदा हो जाती कि रिश्ता अमली सूरत इख़्तियार न कर सकता।
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सालन में हलवा, पकोड़ियों में आलू मटर, पुलाव में फ़िर्नी, ये तमाम चीज़ें खिचड़ी नहीं बन गईं क्या?
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केदार घर का मालिक है।
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वह ऐतिहासिक झूँसी में गाँव-प्रसिद्ध एक अहीर सूरमा की एकलौती बेटी ही नहीं, विमाता की किंवदन्ती बन जाने वाली ममता की काया में भी पली है।
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सबज़ सबज़ जर वालो।
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जीनियस एक पल आँखें मूँदे रहा।
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सारे गहने उनकी पितामही के जमाने के थे, नए फैशन का बारीक काम न था- जैसा मोटा था वैसा ही भारी था।
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वंडरफुल बिज़नस। और कपड़े की दुकान?
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इससे पहले कि गेंद सामने से आती लहर की लपट में चली जाती, उसने टखने-टखने पानी में जाकर उसे पकड़ लिया—हालाँकि अँधेरा इतना हो चुका था कि गेंद और पत्थर में फर्क़ कर पाना मुश्किल था।
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मैं अपनी बहू के इस तरह खुल कर हँसने पर दिल ही दिल में बहुत ख़ुश हुआ।
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आस पास किले बने हुए थे।
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कुछ देर बाद कुत्थू राम अंदर आया तो उस के मुँह से शराब की बू आ रही थी ... .
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सौ तो दो थैलियों में भी न आऍं?
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लाजवंती के चले आने पर भी सुंदर लाल बाबू ने इसी शद-ओ-मद से “दिल में बसाओ” प्रोग्राम को जारी रक्खा।
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बहुत देर तक हम कच्ची सड़कों और पगडंडियों में भटकते रहे। जब हम गांव पहुँचे तो वहां चौधरी थानेदार के स्वागत के लिए इकट्ठे हो गये।
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इस गली के सब ग़ुंडों को मैं जानता हूँ।
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अब उसके पिता नहीं हैं।
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वह अब चुप नहीं रह सका, ‘‘मोदिआइन काकी, बाकी-बकाया वसूलने का यह काबुली कायदा तो तुमने खूब सीखा है!’ ’
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पास हीं केठानी खड़ा-खड़ा धुले हुए कपड़ों की तह लगा रहा था।
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अगर पुर चल रहे होते तो वहाँ खासी रौनक होती थी जिसे देखकर राहगीर कुछ देर के लिए ठिठक जाते थे।
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इन कामों में उसे अपनी सजीवता का लेश-मात्र भी ज्ञान न होता था।
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उन निहत्थों पर लाठी चलवाने के कारण उनकी आत्मा उन्हीं को कोस रही थी।
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इस वक़्त उसके लिए अंदर चाय तयार हो रही थी और वह बरामदे में अकेले बैठा था।
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जब गंगा की बीच धार में उसे प्रवाहित किया गया, तब उसके पंखों को चन्द्रिकाओं से बिम्बित-प्रतिबिम्बित होकर गंगा का चौड़ा पाट एक विशाल मयूर के समान तरंगित हो उठा।
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इससे लोगों को मालूम हो‍गा कि यह धर्म किस अवस्‍था से किस अवस्‍था तक किस-किस रूप में रहता है।
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गाँव-समाज के गाड़ीवान, एक-दूसरे को खोज कर, आसपास गाड़ी लगा कर बासा डालते हैं।
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कुछ दिनों तक इस घटना को लेकर मोहल्ले के लोगों में चुहलबाजियां चलती रहीं, अनेक वाद-विवाद होते रहे।
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सीताराम जी ने भी तो देश के लिए अपने जीवन का उत्सर्ग कर दिया है, नहीं तो बी०ए० पास करने के बाद क्या प्रयत्न करने पर उन्हें नायब तहसीलदार की नौकरी न मिल जाती?
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...निश्चय ही कोई गुप्त संवाद ले जाना है।
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खिलौने, मिठाइयां, बिगुल, गेंद और जाने क्या-क्या। और सबसे ज्यादा प्रसन्न है हामिद।
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घुस जाए तेरे पेट में माता काली ...
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लालमोहर, एक दिन अपनी कचराही बोली सुनाने गया था
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जिसे सिलाना भी होता है वह कस्बे में जाकर सिलवाता है।
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हीराबाई परदा हटाने लगी।
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रामखेलावन जी डरे कि बिगाड़ न दे। दिल से जानते थे, बदमाश है, उनकी तरफ से झूठ गवाही दे चुका है रुपए लेकर; लेकिन लाचार थे;
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एक दम ऐसी ख़बर मिल जाने से सुंदर लाल घबरा गया।
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नाव पास आती तो केवट उतर जाता और खींचकर उसे किनारे लाता, तब सवारियाँ उतरनी शुरू होतीं।
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नारायण बावा रामायण का वो हिस्सा सुना रहे थे जहाँ एक धोबी ने अपनी धोबिन को घर से निकाल दिया था और उस से कह दिया —
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मैके का नाम आते ही उस का तमाम जिस्म एक न मालूम जज़्बे से काँप उठता।
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प्रसन्‍न होकर बोला,' मेरी मानिए, तो वह ब्‍याह कराऊं, जैसा कभी किया न हो, और बहू अप्‍सरा, संस्‍कृत पढ़ी, रुपया भी दिलाऊं।' शास्‍त्री जी पुलकित हो उठे।
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तुम्हारे जाने के बाद मुझे ख़ुदा ने बेटा दिया।
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मोहन से उसका हाड़-हाड़ जल रहा था।
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जब वो कोई अच्छी जगह देखे तो ताली पीटने लगता है।
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मेडिकल डिपार्टमेंट ने फौरन इस पर एक्‍शन लिया और जिस दिन फाइल मिली उसने उसी दिन विभाग के सबसे काबिल प्‍लास्टिक सर्जन को जांच के लिए मौके पर भेज दिया गया।
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मैं भी पीछे गया क्योंकि मेरे साथ होने के कारण आसपास का लावा उबलने का खतरा कम होता था।
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लड़की अपने घर जाए, चिंता कटे।
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दूसरे रह-रह कर चंपा का फूल खिल जाता है उसकी गाड़ी में।
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क्या तुम यह कह सकते हो कि मुझे पुष्प भेंट करने के लिए तुमने कभी अपनी पुस्तक को नहीं छोड़ा?
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सात साल का लड़का बिरजू शकरकंद के बदले तमाचे खा कर आँगन में लोट-पोट कर सारी देह में मिट्टी मल रहा था।
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ब-ख़िलाफ़ उस के मैं तमाम दिन साबुन की झाग बनाता रहता हूँ।
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मुझे देखकर उसने दूर से सलाम किया और पास आकर ज़रा संकोच के साथ कहा, “माफ कीजिएगा, मैं एक बाबू का सामान मोटर-अड्डे तक छोडऩे चला गया था।
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सवा रुपया बनता था, उसने पारो से पौने दो रुपये तलब किए, जान-बूझ कर। ख़ूब लड़ाई हुई।
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अकाल-पीड़ितों की समुचित सेवा के लिए मदरास के' पतित-पावन संघ' के प्रधान निरीक्षक की हैसियत से संघ को साथ लेकर चिदम्बर वहाँ गया था।
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उसने अपने दुख से बचने के लिए लोक सेवा में अपने आपको ग़र्क़ कर दिया।
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बेताले लोगों से पहले ही कह देता हूँ, आज यदि आखर धरने में डेढ़-बेढ़ हुआ, तो दूसरे दिन से एकदम बैकाट! औरतों की मण्डली में गुलरी काकी गोसाईं का गीत गुनगुनाने लगी।
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कुत्थू राम ने होली को साथ लिया और लॉन्च से नीचे उतर आया।
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