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‘कुत्ते की मौत मरना’ कहावत है, परन्तु यदि नीलू के समान शांत निर्लिप्त भाव से कोई मृत्यु का सामना कर सके, तो ऐसी मृत्यु मनुष्य को भी काम्य होगी।
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ज़रूर कोई हा निजी गा रहा है और इस की आवाज़ गूँजती गूँजती उफ़ुक़ के इस पार गुम होती जा रही है।
11
“बेचारी कोई दुखिया है।
22
उसके बाद हम सभी लोगों ने उनसे पूछा-जम्बक की डिबिया से मनुष्य की हत्या आखिर हो ही कैसे सकती है?
22
लू में सब मारे-मारे फिरेंगे।
22
तुम सोच रहे होगे, मैं विवाह की आशा करता हूं।
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उसने हाथ जोड़ कर नमस्कार किया, परदे पर अंकित रामसिया सुकुमारी और लखनलला को।
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मोटर, ट्रक, ट्रैक्टर, स्कूटर पानी की धारा को चीरती, गरजती-गुर्राती गुज़रती हैं…सुबह सात बजे ही धूप इतनी तीखी हो गई?
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वैदकी चले इस अभिप्राय से शाम को रामायण पढ़ते-पढ़वाते हैं तुलसी कृत; अर्थ स्‍वयं कहते हैं।
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मोरनी राधा जैसी ही थी।
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कैसी बात करती हो गौरी, पागलों-सी?' गौरी बोली,' नहीं माँ, मैं पागल नहीं हूँ।
22
विवाह करना चाहें तो सब ठीक है, न करना चाहें तो कुछ भी ठीक नहीं है।
22
बड़े का नाम श्रीकंठ सिंह था।
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आनंदी—मैं न जाने दूँगी?
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कुब्जा नाम के अनुरूप स्वभाव से भी वह कुब्जा प्रमाणित हुई।
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आने के समय उसे अपने साथ प्रयाग लाना पड़ा।
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पहली बार आया है तो क्या?
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वह इस मरुभूमि में निर्मल जलधारा थी।
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उसने तुरंत कलसा उठा लिया, और दीपक बुझा दिया और पेड़ के नीचे छिप कर बैठ रहा।
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कल तक… सुबह तक… किसी न किसी तरह उसे जिंदा रहना है।
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अचानक पुरोहित जी बोले-तुम्हें याद है, मैंने एक कंठा बनाने के लिए सोना दिया था, तुमने कई माशे तौल में उड़ा दिये थे।
22
इसके पच्चीस रुपये मिल रहे हैं, पाँच रुपये बछिया के मुजरा दे दूँगा! बस, गाय अपनी हो जायगी।
22
दोनों तरफ से विवाह की तैयारी हो रही थी।
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हिरामन ने दम लेते हुए पूछा,' भाखा भी समझती हैं कुछ या खाली गीत ही सुनती हैं?
22
मैं हैरान था और सोच रहा था कि किस ख़ूबी से “ख़्वाब में भी न देखी होगी” के अलफ़ाज़ सात शहज़ादों और सात शहज़ादियों वाली कहानी के बयान में से उसने याद रखे थे।
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बोढ़ी उठाकर बोले, ‘ओहो हो! आप धन्य हैं। ’
22
काले कोटवाले नौटंकी के मैनेजर नेपाली सिपाही के साथ दौड़े आए।
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अब तो घर की हवा में साँस लेना भी मान सिंह का मुश्किल हो गया था।
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नदी के किनारे धन-खेतों से फूले हुए धान के पौधों की पवनिया गंध आती है।
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आप यहां', शास्त्रिणी जी ने प्रश्‍न किया।
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किन्तु एक साथ क़रीब एक दर्जन मानवकंठों से गालियों के साथ प्रतिवाद के शब्द निकले –
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शाम को जवाब आ गया।
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नौकर-चाकर लूटते खाते हैं उसकी तो जरा भी चिन्ता नहीं, पर जो सामने आम का बाग है उसकी रात-दिन रखवाली किया करता है, क्या मजाल कि कोई एक पत्थर भी फेंक सके। ’
22
वो चाहती थी कोई और हो जिस के वजूद से उस की ज़िंदगी की यक आहंगी दूर हो सके।
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भोर का तारा मेघ की आड़ से जरा बाहर आया, फिर छिप गया।
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रात के वक़्त रायता नहीं खाओ, तो अच्छा है।
22
जब बच्चा किसी तरह न चुप न हुआ तो वह खुद उसके पास लेट गया और उसे छाती से लगाकर प्यार करने लगा;
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देशभक्त त्यागी वीरों के लिए उसके हदय में बड़ा सम्मान था।
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..कर्ज-उधार अब कोई देते नहीं।
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मुग़लपुरा ही से बल्लोची सिपाही बदले गए थे और उनकी जगह डोगरों और सिख सिपाहियों ने ले ली थी।
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इस पर सावित्री के बच्चे नाराज हुए।
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पत्तलों की जगह कुछ सस्ती क़िस्म की चीनी की प्लेटें और कुछ चमचे भी रख दिए थे।
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“ये कौन हैं? ”
22
विनु दादा की वर्णन-शैली की अत्यंत सघन संक्षिप्तता के कारण उनकी प्रत्येक बात ने स्फुल्लिंग के समान मेरे मन में आग लगा दी थी।
11
चूँकि बार-बार बोलना पड़ता था, इसलिए अर्जुन बोलने से ऊबकर चुप था।
11
जे़रे लब बहस धीरे धीरे साथ साथ चल रही थी।
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मैं अपने को अंत:पुर के शासनानुसार चलने के योग्य ही बना सका हूं, यदि कोई कन्या स्वयंवरा हो तो इन सुलक्षणों को याद रखे।
44
अगर किसी में हिम्मत है तो उन्हें हमसे छीन कर ले जाये।
22
उसकी आँखें निर्विकार भाव से सामने देख रही थी।
11
पं. रामखेलावन जी ने भी मित्र का अनुसरण किया।
44
वे उनका भी मतलब समझते थे।
11
उसने मुझे बताया सबसे बड़ी लड़की की शादी हो चुकी।
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जन्मपत्री भेजने के कुछ ही दिन बाद उत्तर भी आ गया कि जन्मपत्री नहीं मिलती, इसलिए विवाह न हो सकेगा, क्षमा कीजिएगा।
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शास्‍त्री जी बढ़-चढ़कर बातें करते हैं, यह मौका बढ़कर बातें करने का है।
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सुबह नौकर के हाथ फ़र्ख़ंदा को वापस भेज दिया।
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गोधन ने सबका दिल जीत लिया।
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“मुझ से मुहब्बत करते हैं यही उन का काम है।
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सहसा महादेव के कानों में आवाज़ आयी- सत्त गुरुदत्त शिवदत्त दाता, राम के चरण में चित्त लागा।
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इतने दिन हुए इस दुनिया में रहते हुए भी उसके मन का यह रोग दूर नहीं हुआ।
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ये बाग़ किस के हैं ....... .
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इसके सिवा आप जो दंड देंगे, मैं सहर्ष स्वीकार करूँगा।
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केकड़े और उसी तरह के दूसरे जन्तु उछलते हुए समुद्र की तरफ़ से आते थे और पास से निकल जाते।
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अत: झोली के बारे में दोनों मित्रों की अभ्यस्त आलोचना न चल सकी।
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" मगर यह आदमी?" माली ने पेड़ के नीचे दबे आदमी की तरफ इशारा किया।
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संवाद के प्रत्येक शब्द को याद रखना, जिस सुर और स्वर में संवाद सुनाया गया है, ठीक उसी ढंग से जाकर सुनाना, सहज काम नहीं।
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ताड़ के पेड़ का तना क्रमशः डूबता जा रहा है…डूब रहा है।
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दूसरों के लिए वह श्रद्धेय अवश्य है, क्योंकि अपने उपानह-साहित्य में आजकल के अधिकांश साहित्यिकों की तरह अपरिवर्तनवादी है।
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समय नष्ट मत करो, साहस से काम लो और यह प्रतिज्ञा करो।
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सूरदास के गीतों को सुनकर उसका जी स्थिर हुआ, थोड़ा-
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जहां वो कल तक सुहाग की रानियां बनी बैठी थीं।
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घबराओ मत। सिर्फ बाजार से हमारे लिए गोश्त ले आना होगा और महीने में दो दिन चक्की से आटा पिसवा लाना होगा।
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समधियों में और जो हो, तेज भाव होना पाप है, अतएव, मन-ही-मन मामा खुश हुए।
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सराय का मालिक बड़ी हैरत से कुत्थू राम और उस के साथी को देखता रहा।
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उसको तरह-तरह के गीतों की याद आती है।
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चांद-सूरज को भी नहीं मालूम हो! परेवा-पंछी तक न जाने! ‘‘पांवलागी बड़ी बहुरिया!’’ बड़ी हवेली की बड़ी बहुरिया ने हरगोबिन को पीढ़ी दी और आंख के इशारे से कुछ देर चुपचाप बैठने को कहा ...
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छोड़ दो..... छोड़ दो.....
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हिरामन अपने बैलों से बात करने लगा-' एक कोस जमीन! जरा दम बाँध कर चलो। प्यास की बेला हो गई न! याद है, उस बार तेगछिया के पास सरकस कंपनी के जोकर और बंदर नचानेवाला साहब में झगड़ा हो गया था।
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“बेटी का रिश्ता तो नहीं मांगता जो मुझे बाबा समझते हो।
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उसके बाद ही वे उतर गईं।
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लाहौर और कलकत्ते के वैद्यों से बड़ी लिखा-पढ़ी रहती थी।
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उस के शौहर इल्म उद्दीन को औलाद वलाद की कोई फ़िक्र नहीं थी।
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भीत-सी आंखों वाली उस दुर्बल, छोटी और अपने-आप ही सिमटी-सी बालिका पर दृष्टि डाल कर मैंने सामने बैठे सज्जन को, उनका भरा हुआ प्रवेशपत्र लौटाते हुए कहा-' आपने आयु ठीक नहीं भरी है।
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ईश्वर को उन्होंने कोटिश: धन्यवाद दिए, जिसकी कृपा से ऐसा अच्छा वर उन्हें गौरी के लिए मिल गया।
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एक मैली कुचैली धोती बाँधी और औरतों के साथ हर फूल बंदर की तरफ़ अश्नान के लिए चली।
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कई बार वहाँ रुककर उसने हाथ-पैर धोया था और पानी पीकर फिर आगे बढ़ा था।
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पैदल जानेवाली सब पहुँच कर पुरानी हो चुकी होंगी।
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लेकिन सरदार ने दीवान की ओर देखा और दीवान ने पंचों की ओर। पंचों ने एकमत होकर हुक्का-पानी बन्द किया है।
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आज मुझे पैसों की बहुत ज़रूरत है। ” मैंने कुत्ते को बाँहों से निकल जाने दिया।
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शायद अब मिर्ज़ा साहिबान की दास्तान उलफ़तो इफ़्फ़त इन मैदानों में कभी न गूँजेगी।
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क्या उसकी आँखों पर भी परदा पड़ गया है;
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ये लो आर्डर की कॉपी।"" मगर मुझे इस पेड़ के नीचे से तो निकालो।" दबे हुए आदमी ने कराह कर कहा।
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धीरे-धीरे इनकी भैंसों का भय भी चला गया।
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अब कल की ही तो बात है।
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तुलादान को आई हुई गंदुम पिसी।
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जब जरा सावधान हुआ, तो फिर पिंजड़ा उठा कर कहने लगा-‘सत्त गुरुदत्त शिवदत्त दाता। ’ तोता फुनगी से उतर कर नीचे की एक डाल पर आ बैठा, किन्तु महादेव की ओर सशंक नेत्रों से ताक रहा था।
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बड़ी बहुरिया ने कोई जवाब नहीं दिया।
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राजेन्द्र ने हाथ जोड़कर प्रणाम किया।
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एक गुब्बारेवाले के पास से निकलते हुए उसने उसके गुब्बारों को छेड़ दिया।
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पौने आठ बजे के क़रीब एक टेन्डल आया और होली से टिकट मांगने लगा।
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जीनियस के माथे के बल गहरे हो गये और उसके होंठों पर मुस्कराहट ज़रा और फैल गयी।
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