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वहीं उन्हें उबटन मलती, वही काजल लगाती, वही गोद में लिये फिरती, मगर मुलिया के मुँह से अनुग्रह का एक शब्द भी न निकलता।
11
इससे ‘गुण’ कहला दीजिए।
22
जब तक सब मुहाजिरीन अपनी नफ़रत को आलूदा न कर लेते मेरा आगे बढ़ना दुशवार किया नामुमकिन था, मेरी रूह में इतने घाव थे और मेरे जिस्म का ज़र्रा ज़र्रा गंदे नापाक ख़ूनियों के क़हक़हों से इस तरह रच गया था कि मुझे ग़ुसल की शदीद ज़रूरत महसूस हुई।
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भोले ने सोचते हुए कहा। “बाबा तुम झूट बोलते हो... .
22
फिर मैंने ही उन्हें लाठी से पिटवा कर कौन सा भला काम कर डाला?
22
छः बरस मैंने तुम्हारा इंतिज़ार किया।
22
उधार बिक्री की वसूली और पूँजी की किल्लत के कारण दुकान कभी पनप नहीं पाई थी।
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फिर, तीनों भाई गांव छोड़कर शहर जा बसे।
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तब तक दूसरा नौकर रामेश्वरजी का भेजा हुआ पद्मा की माता के पास आया।
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पं. गजानन्‍द शास्‍त्री गंगा नहाते समय कई बार तर्क कर चुके हैं, उत्तर भी भिन्‍न मुनि के भिन्‍न मत की तरह अनेक मिल चुके हैं।
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शाम का क़िरमज़ी रंग आसमान के इस किनारे से इस किनारे तक फैलता गया और क़िरमज़ी से सुरमई और सुरमई से स्याह होता गया।
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वे अपनी गोरी, मोटी देह को रंगीन साड़ी से सजे-कसे, चारपाई पर बैठ कर फूले गाल और चिपटी-सी नाक के दोनों ओर नीले कांच के बटन सी चमकती हुई आँखों से युक्त मोहन को तेल मलती रहती थी।
11
ये बाथू, जो नाली के किनारे उग रहा है, ब-ज़ाहिर एक फ़ुज़ूल सा पौदा है।
22
वह सुन्दर थी, अवस्था अभी कुछ ऐसी ज्यादा न थी।
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उसने होंठ गोल करके एक बार पारसी की तरफ़ देख लिया, फिर खेल देखने में व्यस्त हो गया।
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एक नि:श्वास के साथ कुंती बाहर चली गई और थोड़ी देर बाद ज्योंही गौरी ने ऊपर आँख उठाई, उसने माता-पिता दोनों को सामने खड़ा पाया।
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उसके एक हाथ में एक टोकरा था, दूसरे हाथ में एक कटोरा और पीछे एक 7-8 बरस का लड़का।
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बस, पंचों को मौका मिला।
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एक अजीब मुक़द्दस मुसर्रत आमेज़ मुस्कुराहट उस के चेहरे पर फैली थी।
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शशि तुरन्त ही समझ गई कि जयगोपाल बाबू को नीलमणि के प्रति कोई खास रुचि नहीं है और वह शायद मन से उसे चाहते भी नहीं हैं।
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उस ने अपने शौहर से दरख़्वास्त की कि वो उसे इजाज़त दे कि वो अपनी बेवा माँ को अपने पास बुलाले।
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फिर चलते चलते डिप्टी सुपरिन्टेन्डेन्ट साहब ये भी कहते।
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आसपास बहुत से कपड़े पड़े थे।
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फिर कुछ नहीं बोली।
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पर मान सिंह के साथ चलते हुए वह भी कुछ घुटा-घुटा सा लगा।
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“ये भाई साहब खड़े हैं! ”
22
इल्म उद्दीन ने कहा “हाँ, कुछ ऐसी ही बात थी, लेकिन अल्लाह के फ़ज़ल-ओ-करम से सब ठीक होगया। ”
22
लड़के ने जबाव दिया, ‘ मुझे मामा के यहाँ छोड़ आइए।
22
सहसा मेरी आवाज सुनकर तुम तिलमिला उठते थे।
22
फिर मैंने अपनी एक तकलीफ़ भी इस से बयान की।
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याद है मोहन?'' क्‍या?'' मेरी गुइंइयों ने तुम्‍हारे साथ, खेल में।'' वह तो खेल था।'' नहीं वह सही था।
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बिरजू की माँ को अपने गौने की याद आई।
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मैं कौम की भलाई चाहता था, अब खुद ही नकटों का सिरताज हो रहा हूँ।
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कुत्ता मेरे पास था, इसलिए मैं उसकी बात से घबराया नहीं।
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आनंदी—तुम्हें मेरी सौगंध अब एक पग भी आगे न बढ़ाना।
22
तमाम रात वो इसी क़िस्म के ख़्वाब देखता रहा।
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शशि की इच्छा थी कि उसके इस छोटे से भाई को मन बहलाने की जितनी ही प्रकार की विद्या आती है, सबकी सब बहनोई के आगे प्रकट हो जाएे।
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उस से भी एक क़दम आगे बढ़ कर बड़े ठंडे दिल से ताजिर, इन्सानी माल, इन्सानी गोश्त और पोस्त की तिजारत और उस का तबादला करने लगे।
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अब, पूजा की सामग्री चौक पर सजी हुई है, कीर्तनिया लोग खोल-ढोल-करताल खोलकर बैठे हैं और पंचलैट पड़ा हुआ है।
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उन्हें इशारे और कनाए से भी ऐसी बातों की याद नहीं दिलानी चाहिए जो उनके साथ हुईं —
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मन का मैल धोने के लिए नयन-जल से उपयुक्त और कोई वस्तु नहीं है।
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उसने पहला क़ुहबाख़ाना दिखाते हुए कहा।
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जमींदार का बेटा है कि...
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निगाह-ए-इंतिख़ाब आख़िर सीमा पर पड़ी जो उस की सहेली की सहेली की लड़की थी।
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वाणिज्‍य विभाग का इस मामले से कोई ताल्‍लुक नहीं है।
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पर जब कोई जिज्ञासु उससे इस संबंध में प्रश्न कर बैठता है, तब वह पलकों को आधी पुतलियों तक गिराकर और चिन्तन की मुद्रा में ठुड्डी को कुछ ऊपर उठाकर विश्वास भरे कण्ठ से उत्तर देती हैं-- ‘तुम पचै का का बताई—यहै पचास बरिस से संग रहित है। ’
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कैसी काली-डरावनी रात थी वह! हर पल मौत सामने नाच रही थी।
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यहाँ का सारा काम मेरे ज़िम्मे है। ” “तुम यहाँ चाय-वाय कुछ बनाते हो?”
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मगर अब बीस सैर बोझ के नीचे गर्दन पिचकने लगती है।
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मीठी रोटी! ...मीठी रोटी खाने का मुँह होता है
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चंपिया, बिरजू सो गया क्या?
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अपने देश की कंपनी है।
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मैंने ही तो इसे मर-मर जोड़ा।
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खुन्नू— दादा जो बैठे हैं?
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उसे यह दिखाना पड़ेगा कि मैं ही उससे अलग होना चाहती हूँ नहीं तो वह इसी चिन्ता में घुल- घुलकर प्राण दे देगा।
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...वाह मेरी जान भी कहे तो कोई! मजाल है!
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' उनका लड़का आगरा युनिवर्सिटी से एम।ए।
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मगर हलवाई ने कभी इस नुक़्स को ऑप्रेशन के ज़रीये दूर करने की कोशिश नहीं की।
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वह उसी रुखाई से बोला— मुलिया, मुझसे यह न होगा।
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मैंने फूल रखने की एक हलकी डलिया में रूई बिछाकर उसे तार से खिड़की पर लटका दिया .
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अवश्य है। नहीं तो खड़ा होऊंगा?
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अपने बलबूते पर छोटे कारोबार ही चल सकते हैं।
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लाट ने भी नहीं, पहचाना आखिर लटनी ने।
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कुछ देर बाद मैं चाय पीकर वहाँ से चलने लगा, तो बसन्ते ने कुल छ: आने माँगे।
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पिछली बार आप ने जो आम भेजे थे उस में तो सिर्फ़ दो मेरे हिस्से में आए थे। ”
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हामिद—लोग उन्हें केसे खुश करते होंगे?
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बोले--लालबिहारी तुम्हारा भाई है।
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हरगोबिन ने कुछ नहीं खाया।
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फिर उनमें से कोई जी ही जी में अपना नाम दोहराती— सुहाग वंती— सुहाग वाली....
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कुछ ग़ुस्से से भड़क गई थी।
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बोली: आज तुम आए हुए हो तो मुझे अच्छा लग रहा है।
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जज साहब ने राजेन्द्र से कहा,'' जाओ, मोटर ले आओ।चलें, देखें, क्या बात है।'' राजेन्द्र को देखकर रामेश्वरजी सूख गये।
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पन्ना आज बूढ़ी हो गयी है।
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पर नीचे, धारा से लगे हुए किनारे की बालू पसीजकर सख्त हो गई रहती थी।
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असल में हर चीज उलट-पुलट गयी थी और अपनी पुरानी हालत में आने का यत्न कर रही थी।
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लौटाने आया तो आँखें दिखाने लगा।
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उनके मन के सम्मुख मालदार बनने की एकनिष्ठ इच्छा के सिवा और कोई चीज नहीं थी।
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मां एकाएक किसी से बातचीत नहीं कर पातीं।
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‘‘मायजी, मुझे इसी गाड़ी से वापस जाना होगा।
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" सुनते हो?" आते ही खुशी से फाइल लहराते हुए चिल्‍लाया" प्रधानमंत्री ने पेड़ को काटने का हुक्‍म दे दिया है।
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हिरामन के अंग-अंग में उमंग समा जाती है।
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कुछ ऐसे लोग होते हैं जिनके माँ-बाप नहीं होते।
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मुझे सारंग देव ग्राम पहुँचा दो....”।
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तू मुझे चराती है?
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अगर्चे आज उन औरतों में से एक ख़ुद ब-ख़ुद बहन और दूसरी भावज बन गई है।
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ऐं? रुक गया है?
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उसे याद आया, बाग से बस्ती जाने वाली पगडंडी के बगल में एक तालाब था जिसमें नागपंचमी के दिन बच्चे गुड़िया पीटते थे और जिसमें शादी-विवाह के बाद औरतें झुंड बनाकर गीत गाते हुए मौर सिराने जाती थीं।
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तोता कहाँ गया।
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फिर अपनी आँखें साफ़ करते हुए बोला मुझे इस दुनिया में कोई तकलीफ़ नहीं बस अगर कोई तकलीफ़ है, तो यही! जूं ही रात के दस बजीं मेरी आँखों से आँसू जारी हो जाते हैं।
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लोगों की बिखदीठ से बचे, तब तो! बाहर बैलों की घंटियाँ सुनाई पड़ीं।
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हाँ, मोहर थी।
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लगा, जैसे गीत सुना हो।
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दो साल और पार हो गए।
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बिरजू के माँ ने आँगन से निकल गाँव की ओर कान लगा कर सुनने की चेष्टा की-' उँहुँ, इतनी देर तक भला पैदल जानेवाले रुके रहेंगे?' पूर्णिमा का चाँद सिर पर आ गया है।
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' जी!'' चलते हुए उपन्यास की एक तस्वीर देखती हुई नम्रता से बोली।
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हरियाली पर शनैः-शनैः पानी फिरते देखने का अनुभव सर्वथा नया था। कि इसी बीच एक अधेड़, मुस्टंड और गंवार ज़ोर-ज़ोर से बोल उठा – ‘‘ईह! जब दानापुर डूब रहा था तो पटनियां बाबू लोग उलटकर देखने भी नहीं गए…अब बूझो !’’ मैंने अपने आचार्य-कवि मित्र से कहा –
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अब तो अब्बा को भी काम नहीं मिलता।
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पंडित-जी ... बाबू की माँ ने सिसकियाँ लेते हुए सेठानी जी को कहा।
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कहीं बैठके' बाजे न मुरलिया' सीख रही होगी
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इसीलिए हमेशा सींग खुजाती फिरती जंगी की पुतोहू! बिरजू की माँ के आँगन में जंगी की पुतोहू की गला-खोल बोली गुलेल की गोलियों की तरह दनदनाती हुई आई थी।
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