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लड़का तेज़ी से उस तरफ़ भागा जिधर उसकी चीज़ें फेंकी गयी थीं।
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अप्रैल का महीना था।
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उन्हें बुला आया हूँ।
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मेरी जरूरते बिना बताये समझ जाता और पूरी करता था, पर जिद्दी स्व्हाव के कर्ण चाहते हुए भी मैं माँ से कह न सका कि केठानी को बुला लो जोकि मैं ह्रदय से चाहता था।
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' सावित्री ने किसी की बात का उत्तर न देकर, हींग की पुड़िया ले ली।
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बटवारा हुआ और बेशुमार ज़ख़्मी लोगों ने उठ कर अपने बदन पर से ख़ून पोंछ डाला और फिर सब मिलकर उनकी तरफ़ मुतवज्जो हो गए जिनके बदन सही ओ सालिम थे, लेकिन दिल ज़ख़्मी— गली गली, मोहल्ले मोहल्ले मैं “फिर बसाओ” कमेटियाँ बन गई थीं और शुरू शुरू में बड़ी तुन्दही के साथ “कारोबार में बसाओ”, “ज़मीन पर बसाओ” और “घरों में बसाओ” प्रोग्राम शुरू कर दिया गया था।
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इन्हें गृहस्थी चिंताओं से क्या प्रयोजन! सेवैयों के लिए दूध ओर शक्कर घर में है या नहीं, इनकी बला से, ये तो सेवेयां खाऍंगे।
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यहाँ तो भाड़ा कमाने का मौका है! हीराबाई चली गई, मेला अब टूटेगा।'-' अच्छी बात। कोई समाद देना है घर?' लालमोहर ने हिरामन को समझाने की कोशिश की।
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वह बीच-बीच में कहीं गायब हो जाता था।
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इसीलिए, ठोस-ठोस काम वाला खर्च कहा।
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उसने कहा: “ बाबा मेरी कहानी ... मेरी कहानी ...” “भोले . ...मेरे बच्चे?
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मैं अभी तुझे दिखा देता कि..."" एक तुम्हीं नहीं, यहाँ तुम सबके-सब कुत्ते हो," वह आदमी कहता रहा," तुम सब भी कुत्ते हो, और मैं भी कुत्ता हूँ।
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केवल आकाश के तारागण चिरपरिचित थे- और सब अपरिचित अस्पष्ट था;
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इसमें जलने की क्या बात है भला !...
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पंडितजी देखकर गद्गद हो गए।
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ये कहना भी ग़लत होगा कि चन्द्रु को अपनी क़िस्मत से कोई शिकायत थी हरगिज़ नहीं! वो एक ख़ुश-बाश, मेहनत करने वाला, भाग भाग कर जी लगा कर ख़ुशमिज़ाजी से काम करने वाला लड़का था।
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उसके उदासीन गम्भीर चेहरे को देखकर ऐसा प्रतीत होता कि उसके माता-पिता अपनी वृध्दावस्था की सारी चिन्ताओं का भार, इसी नन्हे-से बच्चे के माथे पर लाद गये हैं।
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वह बच्चों को कैसे रखेगी, सो सीताराम जी जानते थे; पर विवशता थी क्या करते।
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उसकी रूह में किसी से मुहब्बत करने, किसी को चाहने, किसी को गले लग जाने, किसी बच्चे को दूध पिलाने का जज़्बा होगा।
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अत: उन्हें घसीट ले जाने में इसे कोई प्रयास ही नहीं करना पड़ता।
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“तुम जानो मुझे कुछ मालूम नहीं ”
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इस तरह जब हर डिब्बे के रुकने के बाद सब लाशें पानी में गिरा दी गईं तो लोगों ने देसी शराब की बोतलें खोलीं और मैं ख़ून और शराब और नफ़रत की भाप उगलती हुई आगे बढ़ी।
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सूर्य डूब रहा था।
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गांव की किसी एक अभागिनी के अत्याचारी पति के तिरस्कृत कर्मों की पूरी व्याख्या करने के बाद पड़ोसिन तारामती ने अपनी राय संक्षेप में प्रकट करते हुए कहा-" आग लगे ऐसे पति के मुंह में।" सुनकर जयगोपाल बाबू की पत्नी शशिकला को बहुत बुरा लगा और ठेस भी पहुंची।
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वह मेरे पास आएगी तो मैं अपने हाथ से उसका हाथ किसी को दूंगी।
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इस मेज़ से उस मेज़ तक जाने में भी वक़्त लगता है! सरकार वक़्त ले रही है! लो, मैं आ गया हूँ
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इस्स! धन्न है, धन्न है! हिरामन ने देखा, भगवती मैया भोग लगा रही है।
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वो बहुत देर तक ग़ुस्ल-ख़ाने में आईने के सामने सोचती रही उस के ज़ेहन में उस की सहेली की तमाम बातें गूंज रही थीं
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कुछ नहीं ये वो बीमारी है जिसे तुम नहीं समझ पाओगे।
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उसे देखकर वे डंडा सँभालकर उठने लगे। तब उसे मालूम हुआ, उनकी आँखों में मोतियाबिंद है।
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पंडितजी ने अपने देहाती साथी से पूछा, ‘आप बे-में सब पास हैं? ’
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हीराबाई दिल खोल कर हँसी।
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.वह कभी इस छोटी-सी भीड़ को देखता, कभी दूर सरकती नाव को तो कभी कगार के ऊपर फैले बीहड़ के विस्तार को।
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“तुमने उसे यहाँ क्यूँ रक्खा है
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मामा उसके साथ बाहर धूप में बैठकर बातें करने के इरादे से डंडे के सहारे चलकर मड़हे से बाहर आ गये थे।
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मेरी आंखों के सामने कोई मूर्ति न थी, किंतु हृदय में मैं एक हृदय का रूप देखने लगा।
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कार्तिकेय ने अपने युद्ध-वाहन के लिए मयूर को क्यों चुना होगा, यह उस पक्षी का रूप और स्वभाव देखकर समझ में आ जाता है।
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बक्सा ढोनेवाले ने नौटंकी के जोकर जैसा मुँह बना कर कहा,' लाटफारम से बाहर भागो।
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बड़े का कभी खेती में मन लगा ही नहीं था।
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आँखों का सरकारी अस्पताल भी वहीं प्रतिष्ठित है।
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जोरु-जमीन जोर के, नहीं तो किसी और के! ... बिरजू के बाप पर बहुत तेजी से गुस्सा चढ़ता है।
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मेरी और इस की मुहब्बत की मुंतज़िर, तुम्हारी और तुम्हारे महबूब की मुस्कुराहट की मुंतज़िर, इन्सान के इन्सान को चाहने की आरज़ू की मुंतज़िर।
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बी. डी. इसरानी ने मुझे अपना जुआख़ाना दिखाते हुए कहा।
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" सावित्री रसोईघर से हाथ धोकर बाहर आई और बोली-'' हींग तो बहुत-सी ले रखी है खान! अभी पंद्रह दिन हुए नहीं, तुमसे ही तो ली थी।
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इतना बड़ा शायर! अवस के फूल का लेखक !! और हमारी अकादमी का मेंबर नहीं है! उफ उफ कैसी गलती हो गई हमसे! कितना बड़ा शायर और कैसे गुमनामी के अंधेरे में दबा पड़ा है!
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मित्र नीचे उतरा और मित्र से गंभीर होकर बोला,' पूजा में हैं, मैं तो पहले ही समझ गया था।
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हिरामन ने लालमोहर से पूछा,' तुम कब तक लौट रहे हो गाँव?' लालमोहर बोला,' अभी गाँव जा कर क्या करेंगे?
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उसकी सहेलियाँ हँसतीं, तालियाँ बजातीं।
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अब तो बहुत ही शीघ्र मातृहीन शिशु ने अपनी कठोरहृदया दीदी का हृदय जीत लिया।
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पिस कर उस की रोटी बनी।
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उसकी एक ही टेक थी-' डिब्बे में जगह है।' है क्या, जगह है क्या जगह मिले कैसे, कोई किसी को नहीं पहचानता।
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उनकी हवेलियों के पास से गुजरती नहरें-सड़कें भी बेगानी हो गयी थीं।
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निकट जाकर देखा, गिलहरी का छोटा-सा बच्चा है जो संभवतः घोंसले से गिर पड़ा है और अब कौवे जिसमें सुलभ आहार खोज रहे हैं .
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देवयानी-" मुझे वे दिन स्मरण हैं जब तुम पहली बार यहां आये थे।
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नहीं रोकने बोला!' लालमोहर पान ले आया नेपाली दरबान के लिए-' खाया जाए!'' इस्स! एक नहीं, पाँच पास।
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उन के बुलंद किरदार की वज़ाहत बड़े फिदवियाना अंदाज़ में करता और बार बार कहता।
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गीत और बच्चों के क़हक़हे और मर्दों की भारी आवाज़ें और नन्हे बच्चों के रोने की मीठी सदाएँ और छतों से ज़िंदगी का आहिस्ता-आहिस्ता सुलगता हुआ धुआँ और शाम के खाने की महक, मछली और भात और कड़म के साग का नरम नमकीन और लतीफ़ ज़ायक़ा और पूरे चांद की रात का बिहार आफ़रीं जोबन। मेरा ग़ुस्सा धुल गया।
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चारों अठनिया! बोली कि जब तक मेले में हो, रोज रात में आ कर देखना।
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नौजवान हिंदू औरतों को घसीट कर जंगल में ले गए, मैं और मुँह छुपा कर वहां से भागी।
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मैंने सुना, मेरे दिल पर ठेस लगी।
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मुलिया— क्या कहती हूँ, कुछ सुनाई देता है, रोटी तैयार है, जाओ नहा आओ।
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अभी पहाड़ों पर बर्फ़ का कोहरा था।
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‘हवा में उड़ता जाए, मोरा लाल दुपट्टा मलमल का, हो जी हो जी !’ हमारे ब्लाक के पास गोलम्बर में नाव पहुंची ही थी कि अचानक चारों ब्लाक की छतों पर खड़े लड़कों ने एक ही साथ किलकारियों, सीटियों, फब्तियों की वर्षा कर दी और इस गोलम्बर में किसी भी आवाज की प्रतिध्वनि मंडरा-मंडराकर गूंजती है।
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शहरवाली बात! तिस पर बाँस का अगुआ पकड़ कर चलनेवाला भाड़ेदार का महाभकुआ नौकर, लड़की-स्कूल की ओर देखने लगा।
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भक्तिन का दुर्भाग्य की उससे कम हठी नहीं था, इसी से किशोरी से युवती होते ही बड़ी लड़की भी विधवा हो गई।
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न जाने कब तक पढ़ेंगे ओर क्या करेंगे
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कंट्रोल के जमाने में चोरबाजारी का माल इस पार से उस पार पहुँचाया है।
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इस बार ‘ ऐसी सम्भावना है’ के बदले ‘ऐसी आशंका है’ कहा जा रहा था।
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उनमें से एक के दिल में कुछ शुब्हा सा हुआ।
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भैंस का दो सेर ताजा दूध वह उठ कर सबेरे पी जाता था।
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बेचारा सचिव उसी वक्‍त अपनी गाड़ी में सवार होकर सेक्रेटेरिएट पहुंचा और दबे हुए आदमी से इंटरव्‍यू लेने लगा।
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डॉक्टर साहब कुत्ते को देखकर ‘भीषण भयभीत’ हो गए और चिल्लाने लगे –
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और उनकी गर्दन में पड़ी गोलियों की लडि़यां चमक रही थीं।
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होश में आ, अपने को सँभालकर कृत्रिम हँसी रँगकर पूछा,'' किसके साथ किया?'''' लिली के साथ।'' उसी तरह हँसकर राजेन्द्र बोला।
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रसीला भी तो शक्ल से राहू ही दिखाई देता है।
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सदा बड़े-बड़े आदमियों की तारीफ करते हैं और ऐस स्‍वर से, जैसे उन्‍हीं में ऐ एक हों।
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हाथ में है हाल की निकली स्ट्रैंड मैगजीन की एक प्रति। तस्वीरें देखती जाती है।
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क्योंकि बादाम के पहले शगूफ़ों की ख़ुशी में हम सब सहेलियाँ रात-भर जागेंगी और गीत गाएँगी और में तो सहि पहर से तैयारी कर रही थी, उधर आने की।
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“बताओ, तुम्हारी मर्ज़ी किया है ?” “ अगर आप ठंडे दिल से सुनें तो मैं अर्ज़ करूं। ”
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मुझे स्वयं ज्ञान नहीं कि कब नीलकण्ठ ने अपने-आपको चिड़ियाघर के निवासी जीव-जन्तुओं का सेनापति और संरक्षक नियुक्त कर लिया।
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बलवाही नाच की बात उठते ही मुझे अपने परम मित्र भोला शास्त्री की याद हमेशा क्यों आ जाती है?
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भानजे के गले में तत्काल सोने के हार पहनाये गये।
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