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लड़की की अवस्था सोलह या सत्रह की होगी, किंतु नवयौवन ने उसके देह, मन पर कहीं भी जैसे जरा भी भार न डाला हो।
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पन्ना की बातों को वह प्राचीन मर्यादानुसार आँखें बंद करके मान लेता था।
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बादलों की भयानक गर्जन के स्वर में काबुली लोग अपने मिली-जुली भाषा में अपने देश की बातें कर रहे हैं।
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महावीर स्वामी को सुमर कर हिरामन ने गाड़ी रोकी।
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परसों से उसे बुख़ार आ रहा है।
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जब तीन दिन तक उसने न कुछ खाया न पिया, तब डॉक्टर से अनुमति लेकर उसे अस्पताल लाया गया।
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विदा के समय शशि अपने अनाथ भाई को वचन दे आई थी कि उसकी दीदी उससे फिर मिलेगी, पता नहीं उस वचन को वह निभा सकी अथवा नहीं।
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जान पड़ता था, उसके पैरों में पर लग गये हैं।
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इस प्रकार पति-पत्नी दोनों ही प्रसन्न थे, पर गौरी से कौन पूछता कि उसके हृदय में कैसी हलचल मची रहती है।
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तुझे! बड़ा हाथ चलता है लोगों पर। ठहर!' मखनी फुआ नीम के पास झुकी कमर से घड़ा उतार कर पानी भर कर लौटती पनभरनियों में बिरजू की माँ की बहकी हुई बात का इंसाफ करा रही थी-' जरा देखो तो इस बिरजू की माँ को! चार मन पाट( जूट )का पैसा क्या हुआ है, धरती पर पाँव ही नहीं पड़ते!
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“घुँघराले बालों वाला नौजवान था—मोटे शीशे का चश्मा लगाए हुए ...? ”
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हिरामन ने परदे को जरा सरकाते हुए कहा,' देखिए, यही है तेगछिया। दो पेड़ जटामासी बड़ है और एक उस फूल का क्या नाम है, आपके कुरते पर जैसा फूल छपा हुआ है, वैसा ही, खूब महकता है, दो कोस दूर तक गंध जाती है, उस फूल को खमीरा तंबाकू में डाल कर पीते भी हैं लोग।'' और उस अमराई की आड़ से कई मकान दिखाई पड़ते हैं, वहाँ कोई गाँव है या मंदिर?' हिरामन ने बीड़ी सुलगाने के पहले पूछा,' बीड़ी पीएँ?
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तुम्हारी बाँहों में मेरी बांहें होतीं और हम जन्नत की तमाम मंज़िलें तय कर के दोज़ख़ के दहाने तक पहुंच जाते। ”
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वहीं एक कहार रामगुलाम रहता था।
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मुझे अपना तो कुछ ख़याल नहीं, लेकिन इन का तो है। ...... .
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चुनांचे उस ने इस का घर से निकलना बंद कर दिया।
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इस मृत्यु-लोक में जहां तृषा से कंठ में कांटे पड़ जाते हैं, हंसना और मुस्कराना कोई ठिठोली नहीं है।
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यह लोग क्यों इतना धीरे-धीरे चल रहे हैं?
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उसने उस छोटे से स्वतन्त्र प्रेमी अत्याचारी के आगे पूरे तौर पर आत्मसमर्पण कर लिया।
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इस के माँ बाप तो ये चाहते थे कि सत्तरह बरस के होते ही उस का ब्याह हो जाये मगर कोई मुनासिब-ओ-मौज़ूं रिश्ता मिलता ही नहीं था।
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इस वायु-प्रवाह से झूम उठा, गुंजित हो गया।
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जिस परमात्मा ने पेट दिया है वह अन्न भी देगा।
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ये मेरे साथ तीन बादशाह और हैं।
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मैं नीचे आँगन में चुप-चाप खड़ा उस की तरफ़ देखता रहा।
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‘‘लौटा ले भैया। आगे बढ़ने की ज़रूरत नहीं। ’’
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वो ज़ोर से हँसा। दो लड़के हैं मगर दोनों सियाने उम्र के एक को फ़िलपाइन में बिज़नस करके दिया है, दूसरा जापान में है।
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उसने पढ़ना छोड़ दिया था और खेती का काम करता था।
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मैं अपनी आँखों से यह नहीं देख सकती कि सारा घर तो चैन करे, जरा-जरा-से बच्चे तो दूध पीयें, और जिसके बल-बूते पर गृहस्थी बनी हुई है, वह मट्ठे को तरसे। कोई उसका पूछनेवाला न हो।
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बीस कोस की मंजिल भी कोई दूर की मंजिल है?
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“ बहू.... .
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पन्ना की बातों में आज सच्ची वेदना, सच्ची सान्त्वना, सच्ची चिन्ता भरी हुई थी।
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नीलकण्ठ दूर ऊपर झूले में सो रहा था।
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उसने लिखा था-" हैरत है, इस समय जब ‘पेड़ उगाओ’ स्‍कीम बड़े पैमाने पर चल रही है, हमारे मुल्‍क में ऐसे सरकारी अफसर मौजूद हैं, जो पेड़ काटने की सलाह दे रहे हैं, वह भी एक फलदार पेड़ को! और वह भी जामुन के पेड़ को !! जिसके फल जनता बड़े चाव से खाती है।
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मोर के सिर की कलगी और सघन, ऊँची तथा चमकीली हो गयी।
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“ख़ामोश!— हम नहीं बोलने देंगे और एक कोने में से ये भी आवाज़ आई— मार देंगे। ”
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उसने अपने तमाम अच्छे कपड़े और जे़वरात की पिटारी एक संदूक़ में मुक़फ़्फ़ल कर के चाबी एक जोहड़ में फेंक दी थी।
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चुनांचे उस ने ज़ुबेदा से पूछा “ये नोट दूध की पतीली में किस ने डाले हैं? ”
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उस फूल में एक परी बैठी है।
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एक घंटा और गुज़र गया।
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आप लोगों को निकालने के लिए नहीं आया हूँ।
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उसके ठेले के सारे कांच तोड़ डाले।
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मैंने इस से कहा। यहां तो ख़लीफ़ा हारून रशीद की तरह ताली बजाने को जी चाहता है।
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देवयानी-" किन्तु जब मैंने तुम्हारी स्वीकृति के लिए समर्थन किया तो वह इस विनती को अस्वीकार न कर सके।
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हम लोग धनी नहीं हैं।
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हसब-ए-मामूल इन दोनों में वही रस्मी बातें होएं।
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और किस का होगा ?” ...और फिर सब औरतें लक्षमण की तारीफ़ करने लगीं ... .
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छोटे जज साहब! इस दफ़ा ऐसे तोहफ़ा आम होंगे कि आप की तबीयत ख़ुश हो जाएगी।
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केवल गूलर का दूध चाहिए।
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तमाम डर और दहशत के बावजूद वे अपने गाँव-देश का नाता नहीं भूले थे।
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नीलमणि की सारी देह में केवल सिर ही सबसे बड़ा था।
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मेरी पाँच वर्ष की छोटी लड़की मिनी से पल भर भी बात किए बिना नहीं रहा जाता।
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इन आँखों के ईलाज के लिए, मगर किसी डाक्टर से ठीक नहीं हुईं।
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इसके पीछे तीर्थ-यात्रा करने चला जाऊँगा।
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जिसको मैंने कठिन परिश्रम के पश्चात् प्राप्त किया है।
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दो-एक ख़ाली नारियलों को भी उसने झटककर देखा।
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किरणों के जल से भरकर, जीवन में एक ही प्रकार की लहरें उठाती हुई, परिचय के प्रिय पथ पर बहा ले जाती है; जो सबसे बड़ी है, जिसके भीतर ही बड़े और छोटे के नाम में भ्रम है, वह स्वयं कभी छोटे और बड़े का निर्णय नहीं करती, उसकी दृष्टि में सभी बराबर हैं, क्योंकि सब उसी के हैं।
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मेरे डिब्बों में ज़्यादा-तर हिंदू लोग बैठे हुए थे।
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इस में ख़ूबी ये थी कि बर्फ़ की तरह सपेद दाढ़ी चंद ही लम्हों में उत्तर से आने वाली घटा की तरह काली हो जाती थी।
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हस्ब-ए-मामूल इस दफ़ा भी आमों के दो टोकरे आए गले सड़ने दाने अलग किए गए जो अच्छे थे उन को मुंशी करीम बख़्श ने अपनी निगरानी में गिनवा कर नए टोकरों में रखवाया।
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सामान चढ़ाने का समय प्राय: नहीं था।
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इस साल भर के भीतर उन्होंने बच्चों को एक बार भी न देखा था।
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मैने कुतूहल से उसकी ओर देखा।
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महादेव जानता था कि रात को तोता कहीं उड़ कर नहीं जा सकता।
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अब मुझे बंबई पहुंच कर वहां से फ़ौरन नैरुबी जाना था।
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लक्षमण ने कोठे पर चढ़ कर देखा, तो परनाले में एक कुत्ते का पिल्ला मरा पड़ा था और पिल्ले का सर परनाले में बे-तौर फंस गया था।
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सरपट, बगटुट ...
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उसकी नाड़ी क्षीण पड़ती जा रही थी।
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“गंदुम पैदा होता है तो आदमी उस से अपना पेट पालते हैं उस की जवानी भी तो किसी खेत में उगी थी अगर उसे कोई खाएगा नहीं तो गल सड़ नहीं जाएगी? ”
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अमराई उन्हीं की थी।
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सोचने लगी, अबकी बार जो वह पति को पास पाएगी तब जीवन की इन शेष घड़ियों को और बसन्त की आभा भी निष्फल नहीं होने देगी।
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चालीस साल का हट्टा-कट्टा, काला-कलूटा, देहाती नौजवान अपनी गाड़ी और अपने बैलों के सिवाय दुनिया की किसी और बात में विशेष दिलचस्पी नहीं लेता।
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लड़का गीली गेंद को ज़रा-ज़रा उछालता हुआ, उन लोगों के पास ले आया।
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हाथी-घोड़ों का तो कहना ही क्या, कोई सजी हुई सुंदर बहली तक न थी।
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छोकरों ने लक्षमण को देखा तो इस का हुल्या अजीब ही बना हुआ था।
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“मैं ने लाजो भाबी को देखा है। ”
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इस संबंध में वे मामा के व्यक्त किए मत की पूर्ण उपेक्षा करके मेरी ओर देखकर बोले, तुम क्या कहते हो?
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इसके बाद बाकी सिर्फ़ बारह सौ छब्बीस बटा सात रह जाएगा।
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उसकी अम्मॉँ यह शोर सुनकर बिगड़ी और दोनों को ऊपर से दो-दो चॉँटे और लगाए।
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पूछा-'' कितने पैसे हुए खान?''
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....एक पेट तो कुत्ता भी पालता है।
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पिता ने कहा,'' बेटा, अब अपना काम देखो।'' राजेन्द्र ने कहा,'' जरा और सोच लूँ, देश की परिस्थिति ठीक नहीं।'''' पद्मा!'' राजेन्द्र ने पद्मा को पकड़कर कहा।
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चिट्ठी आये हुए तो आज १५ दिन हो गये है।" मान सिंह ने २-३ तेज-तेज साँसे ली।
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चार बच्चों, तीन मर्दों, दो औरतों, चार भैंसों पर मुश्तमिल बड़ा कुम्बा और अकेली होली ....
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मैंने कहा: यही हाल मेरा भी है, भुट्टा ना खा सकूँगा।
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राजा के सम्बन्धियों ने हाँड़ी-जैसे मुँह लटका कर और सिर हिलाकर कहा,'' इस राज्य के पक्षी सिर्फ बेवकूफ ही नही, नमक- हराम भी हैं।
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' पद्मा!'' गम्भीर होकर माता ने कहा।
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कुछ दिन इधर-उधर भटकने के बाद उसे एक गार्मेंट फैक्टरी में सिलाई का काम मिल गया था।
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रसालू और नेकी राम और सुंदरलाल बाबू कभी महिन्द्र सिंह ज़िंदाबाद और कभी “सोहन लाल ज़िंदाबाद” के नारे लगाते ...... . .....
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नीलाभ ग्रीवा के कारण मोर का नाम रखा गया
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अब बाबू लोग हाक़िम हैं और हाक़िमों का कहा मानना पड़ता है, वरना..."" अरे बाबा, शान्ति से काम ले। यहाँ मिन्नत चलती है, पैसा चलता है, धौंस नहीं चलती,"
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तुम दोनों पिछली बिहार में ना थे।
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मानो अपने पति से उसका पुन: विवाह हुआ हो।
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इस सवाल के लिए वह तैयार नहीं था।
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लक्षमण ने रेशमी पटका बाँधा।
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तो फिर क्या करें ?मैंने पूछा।
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हिरामन को सबकुछ रहस्यमय- अजगुत-अजगुत- लग रहा है।
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आनंदी खून का घूँट पी कर रह गयी।
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अब दीदी के सिवा इस दुनिया में उसके भाई का है ही कौन?
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कच-" तुम जानती हो कि मैंने सच्चे हृदय से देवताओं से प्रतिज्ञा की थी कि मैं जीवन के अमरत्व का रहस्य प्राप्त करके आपकी सेवा में आ उपस्थित होऊंगा?
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फ़र्स्ट क्लास का डिब्बा अंदर से बंद था।
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