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उसी लम्हा गूँगा फूट फूटकर रोने लगा। वो आँसू नहीं थे।
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पद्मा हँस दी।
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आँखें फ़िज़ा में तीरों की बारिश सी महसूस करती हुई।
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मगर गाड़ी के ब्रेक बहुत उम्दा थे।
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अगर कुछ काम-धंधा करना नहीं चाहती, मत कर।
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शल्य-क्रिया असफल हुई, तब उसकी दूसरी टाँग भी तोड़ दी जाती है।
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हिरामन पर। तेगछिया के नीचे एक भी गाड़ी नहीं।
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बिरजू की माँ ने उबले शकरकंद का सूप रोती हुई चंपिया के सामने रखते हुए कहा, बैठके छिलके उतार, नहीं तो अभी ...!' दस साल की चंपिया जानती है, शकरकंद छीलते समय कम-से-कम बारह बार माँ उसे बाल पकड़ कर झकझोरेगी, छोटी-छोटी खोट निकाल कर गालियाँ देगी-' पाँव फैलाके क्यों बैठी है
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हरी हरी हरी हर, हरी हर, हरी मेरी बार देर क्यूँ इतनी करी फिर उसने अपने लाल को प्यार से बुलाते हुए कि “भोले !...
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जब ज़ुबेदा की शादी हुई तो उस की उम्र पच्चीस बरस की थी।
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उधर देखते हुए अनायास उसके पैरों का रुख़ बदल गया और वह दूसरी दिशा में चलने लगा।
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जब तू किसी की होकर नहीं रहना चाहती, तो दूसरे को क्या गरज है, जो तेरी खुशामद करे?
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सुबह-सुबह?"" तांगे कि फ़िक्र मत करो तुम, जसवंत को साथ भेजेंगे।
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अंडर सेक्रेटरी डिप्‍टी सेक्रेटरी के पास गया।
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भोला चारपाई के चारों तरफ़ घूम कर बिस्तर बिछा रहा था।
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“आपकी यहाँ पर अपनी ज़मीन होगी ?”
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श्रीकंठ बोले--बहुत प्रसन्न है; पर तुमने आजकल घर में यह क्या उपद्रव मचा रखा है?
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उन फूहड़ युवकों की सारी ‘एक्ज़िबिशनिज़्म ’ तुरत छूमंतर हो गई और युवतियों के रंगे लाल-लाल ओंठ और गाल काले पड़ गए।
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कारण, इसके कुछ ही दिन बाद, एक दिन भोर होते ही गांव वालों ने सुना कि रात को जयगोपाल बाबू की स्त्री हैजे से मर गई और रात ही को उसका अन्तिम संस्कार हो गया।
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वक़्त गुज़रता था जत्था क़रीब आता गया, ढोलों की आवाज़ तेज़ होती गई।
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भोले का जिस्म बहुत नर्म-ओ-नाज़ुक था और उस की आवाज़ बहुत सुरीली थी।
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उसने समझा था कि भैया मुझे बुलाकर समझा देंगे।
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अपने गाँव के लालमोहर, धुन्नीराम और पलटदास वगैरह गाड़ीवानों के दल को देख कर हिरामन अचकचा गया।
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उसकी गर्मी मुझे अच्छी प्रतीत होने लगी।
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सामने के कैंटीन का लडक़ा बाबुओं के कमरे में एक सेट चाय ले गया।
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फिर दूर किसी गहरे कुवें से मुझे एक लड़की की चीख़ें सुनाई देने लगीं।
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लोगों के फेंके हुए जूठे दोने, खाली नारियल और बहुत-सी मसली हुई थैलियाँ जहाँ-तहाँ पड़ी थीं।
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हांगकांग में मेरा काम ख़त्म हो चुका था।
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मोहन एम.ए . होकर यहां सहकारी है, लेकिन लिखने में हिंदी में अकेला।
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यही नहीं, वह किस रंग की साड़ी किस प्रकार पहने हुए थी, यह भी ठीक से नहीं कह सकता।
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मुंशी करीम बख़्श उन्हें छोटे जज साहब कहा करता था।
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उस उठन्नी को ईमान की तरह बचाती चली आती थी
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' सावित्री हँस पड़ी-'' अच्छा चलो, पहले खाना खा लो, फिर मैं रुपया तुड़वाकर तीनों को पैसे दूंगी।
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रहमत ने प्रफुल्लित मन से कहा," हां, वहीं तो जा रहा हूं।"
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कई माजूनें, कई सफ़ूफ़, कई क़ुर्स उस को खिलवाए, मगर ख़ातिर-ख़्वाह नतीजा बरामद न हुआ।
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इस लिए उस ने सोचा कि चलो चंद औराक़ देख लूं।
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चन्द्रु ने अपनी नज़रें चुरा लीं।
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मैं चाहता हूँ कि आम पक जायें, टपकने लगें तब जिसका जी चाहे चुन ले जाए। कच्चे आम खराब करने से क्या फायदा?
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बदक़िस्मती से उनमें मेरा कमरा भी शामिल था।
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उस का ख़ाविंद इस से बहुत प्यार करता है।
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दूसरी ओर हम कौवा और कांव-कांव करने को अवमानना के अर्थ में ही प्रयुक्त करते हैं .
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“जी, छपी हुई लिस्ट तो यहाँ पर यही है, ” वह असमंजस में पड़ गया।
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फिर अंधेरे में ख़फ़ीफ़ से हंसने और बातें करने की आवाज़ें आने लगीं।
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मुझे दोपहर को अपने घर से छे मील दूर अपने मज़ारों को हल पहुँचाने थे।
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मुलिया— मैं कसम रखा दूँगी, नहीं चुपके से चले चलो। रग्घू— देख, अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है।
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पहली उमंग में तो उन्होंने तीन ब्याह दिल खोलकर किये; पर पंद्रह-बीस हजार रुपयों का कर्ज सिर पर हो गया, तो ऑंखें खुलीं, हाथ समेट लिया।
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पिता को आते देख, गौरी चुपके से दूसरे कमरे में चली गई।
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उसने बिना किसी हिचक के अठन्नी लेकर अपनी झोली में रख ली।
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...भगवान जाने क्या लिखा है
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तब क्या उस घर में विवाह हो रहा है, और हो रहा है तो किसका?
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तब फिर उसकी अपनी सुख की घर-गृहस्थी और स्नेह का दाम्पत्य जीवन सब-कुछ सहसा भयानक रूप में उसके समक्ष आ खड़ा हुआ।
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रग्घू ने कुंजी उतारी और चाहा कि संदूक खोले कि मुलिया ने उसका हाथ पकड़ लिया और बोली— कुंजी मुझे दे दो, नहीं तो ठीक न होगा।
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पन्ना को अवसर मिलता, तो वह आकर उसे तसल्ली देती;लेकिन उसके लड़के अब रग्घू से बात भी न करते थे।
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अधिकांश टूटी हुई सीपियाँ ही थीं।
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नहीं!' मान-भरे सुर में बोली बिरजू की माँ,' जाने का ठीक-ठिकाना नहीं ...
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फिर उसने इस तरह विस्मय के साथ आँखें खोलीं जैसे वह यह निश्चय न कर पा रहा हो कि अपने आसपास बैठे हुए लोगों के साथ उसका क्या सम्बन्ध हो सकता है।
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परन्तु दस दिन बाद फिर कोई-न-कोई जड़ फूट पड़ती है और एक महीने के बाद ऐसा लगता है जैसे किसी ने खेत की जुताई की ही नहीं।'' असल में इस बूढ़े की बात में कुछ-कुछ सच्चाई दिखाई दे रही थी।
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लूसी के लिये सभी रोये, परन्तु जिसे सबसे अधिक रोना चाहिए था, वह बच्चा तो कुछ जानता ही न था।
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उचित भी था, क्योंकि सास तीन-तीन कमाऊ वीरों की विधात्री बनकर मचिया के ऊपर विराजमान पुरखिन के पद पर अभिषिक्त हो चुकी थी और दोनों जिठानियाँ काक-भुशुण्डी जैसे काले लालों की क्रमबद्ध सृष्टि करके इस पद के लिए उम्मीदवार थीं।
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' प्यार? करती हूँ।'''' करती है?'''' हाँ, करती हूँ।'''' बस, और क्या?'''' पिता!'' पद्मा की आबदार आँखों से आँसुओं के मोती टूटने लगे, जो उसके हृदय की कीमत थे, जिनका मूल्य समझनेवाला वहाँ कोई न था।
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मेरा तुमसे अज़ली बैर है।
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इसलिए पानी उछल रहा है…पच्छिम-उत्तर की ओर, ब्लॉक नम्बर एक के पास-पुलिस चौकी के पिछवाड़े में पानी का पहला रेला आया…ब्लॉक नम्बर चार के नीचे सेठ की दुकान के बाएं बाजू में लहरें नाचने लगीं।
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पर जहां उसके पति शयन किया करते थे, उस स्थान पर दोनों बांहें फैलाकर वह औंधी पड़ी रही और बारम्बार तकिए को छाती से लगाकर चूमने लगी, तकिए में पति के सिर के तेल की सुगन्ध को वह महसूस करने लगी और फिर द्वार बन्द करके बक्स में से पति का एक बहुत पुराना चित्र और स्मृति-पत्र निकालकर बैठ गई।
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सलीमा का गीत गाकर आँख का इशारा मारनेवाले गोधन से गाँव-भर के लोग नाराज थे।
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खुन्नू गाय चराता था।
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शायद यही वजह थी कि सुबह के वक़्त उसने मेरी गोद में आने से इनकार कर दिया और बोला: “ मैं नहीं आऊँगा।
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जहां ठंडी सांसों से पाला पड़ा है।
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अरब सागर की हवा ‘हुआँ-हुआँ’ करती सामने की इमारतों से टकरा रही थी।
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सुंदरलाल का सारा जिस्म एक अन जाने ख़ौफ़, एक अन जानी मोहब्बत और उस की मुक़द्दस आग में फुंकने लगा।
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पहले तो मैं उसे पहचान न सका।
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भरा हुआ मुखड़ा,चौड़ी छाती।
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‘‘अरे, जवान आदमी तो पांच बार जलपान करके भी एक थाल भात खाता है। ’’
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बाबू जब सुख नंदन, अमृत और दूसरे अमीर-ज़ादों में खेलता तो किसी को मालूम न होता कि ये उस माला का मनका नहीं है।
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जब चन्द्रु लड़कपन की हदूद फलांगने लगा, सिद्धू ने उसकी ख़ातिर एक नया धंदा शुरू किया।
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फिर इस पानी से वुजू कैसे हो सकता था! वे लोग तो अनजानों को भी इन नहरों में नहाने से मना कर देते थे।
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पेट के लिए?
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यदि यही बात है तो उसका विस्मृत हो जाना ही अच्छा है।
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चुनांचे दोनों टोकरे ग़ुसलख़ाने में ठंडी जगह रख दिए गए ताकि आम ख़राब ना हो जाएं।
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डाल चंद और गणपत महा ब्राह्मण दोनों मोटे आदमी थे और क़रीब क़रीब हर एक दावत में देखे जाते थे।
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दूसरे गाँव से आकर बसा है गोधन और अब टोले के पंचों को पान-सुपारी खाने के लिए भी कुछ नहीं दिया।
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इसी समय महात्‍माजी बनारस होते हुए कहीं जा रहे थे, कुछ घंटों के लिए उतरे।
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चन्द्रु को सिद्धू ने डेढ़ रुपया रोज़ पर लगाया था।
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बकरे की माँ कब तक खैर मनायेगी?
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आज उसने तुम्हारे लिए अपनी सहेलीयों अपने अब्बा, अपनी नन्ही बहन और अपने बड़े भाई सबको फ़रेब में रखा है, क्योंकि आज पूरे चांद की रात है और बादाम के सपीद ख़ुशक शगूफ़े बर्फ़ के गालों की तरह चारों तरफ़ फैले हुए हैं और कश्मीर के गीत उस की छातीयों में बच्चे के दूध की तरह उमड आए हैं।
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उनकी वर्तमान आय एक हजार रुपये वार्षिक से अधिक न थी।
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इस तरह पालता-पोस्ता बड़ा करता है।
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कैसी बेवक़ूफ़ी की बात करते हो! उसने मुझसे कहा।
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दो दिन तक आनंदी कोप-भवन में रही। न कुछ खाया न पिया, उनकी बाट देखती रही।
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उस आदमी ने जिद करते हुए कहा, बिना छोड़े कोई चारा नहीं।
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मय बाजा-गाजा, छापी-फाहरम के साथ हीराबाई की जै-जै कर रहा हूँ।' हिरामन हड़बड़ा कर उठा।
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बाबू भी शामिल हुआ।
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इस बेचारे की ख़ूब ही आओ भगत होती।
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उसने क्रोध से पाँव पटक-पटककर आँगन को कम्पायमान करते हुए कहा- ‘हम कुकुरी-बिलारी न होयँ, हमारा मन पुसाई तौ हम दूसरे के जाब नाहिं त तुम्हारा पचै के छाती पर होरहा भूँजब और राज करब, समुझे रहौ। ’
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रग्घू ने तीनों लड़कों को दरवाजे पर खड़े देखा, पर कुछ बोला नहीं।
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सच तो ये है कि ईश्वर ने सब जीव जन्तों को नंगा कर के इस दुनिया भेज दिया है।
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उस हाथ के दबाव से लड़के ने महसूस किया कि उसकी जेब में सीपियाँ टूट रही हैं।
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उसी घाट पर बाबू और उस के भाई बंदु, बाप दादा वही एक गाना, उसी पुरानी सुरताल से गाते हुए कपड़े धोए जाते।
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उसने मुझे रात के खाने पे अपने घर आने की दावत दी जो मैंने फ़ौरन क़बूल कर ली।
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रग्घू ने पूछा— लड़के बगीचे में चले गये काकी, लू चल रही है।
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जैसा कि शाहिदा ने उस को बताया था कि उस का शौहर बहुत प्यार करने वाला है बहुत नेक ख़सलत है लेकिन इस से ये साबित तो नहीं होता कि वो शाहिदा के लिए लाज़िमी था।
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