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यह भी साले ने किसी का उठाया होगा।
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तुम्हारी अपनी बोली में कोई गीत नहीं क्या?
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उनके पैरों के बीच में खड़ा होकर बोला, बाबू, तुम तो कैते थे न कि माँ को दिखाने ले चलते हैं।
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एक नर फूल फूल कर माद्दा को अपनी तरफ़ माइल कर रहा था।
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...मगर बच्चों को अपने साथ खेलने के लिए कोई न कोई चाहिए।
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दूसरे देवियों से नहीं कहा, इसलिए कि ले जाना होगा और सबके लिए वहां सुविधा न होगी।
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डाक्टर बुलाने के लिए तीन चार आदमी दौड़ाए गए थे लेकिन इस से पहले कि इन में से कोई वापिस आए मुंशी करीम बख़्श ज़िंदगी के आख़िरी सांस लेने लगा।
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तब डटकर पंद्रह दिनों तक मेहमानी करूंगा। ’’
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यह बोल सदैव महादेव की जिह्वा पर रहता था।
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बाग में पहुँचा तो पैर के तलुओं से आग निकल रही थी; सिर चक्कर खा रहा था।
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एक चीज भी कभी इधर से उधर न हुआ था।
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साल-भर से कन्या को देखकर माता भविष्य-शंका से कांप उठती हैं।
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शास्‍त्री जी ने नौकर को पान और मिठाई ले आने के लिए भेजा और स्‍वाभाविक बनावटी विनम्रता के साथ मित्रवर गदाधर ने आगंतुक अपरिचित महाशय का परिचय पूछने लगे। पं. गदाधर जी बड़े दात्त कंठ से पं. रामखेलावन जी की प्रशंसा कर चले, पर किस अभिप्राय से वे गए थे, यह न कहा। कहा,' महाराज! आप एक अत्‍यंत आवश्‍यक गृहधर्म से मुक्‍त होना चाहते हैं।
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‘तुम कहाँ तक मदद करोगे, काका?’ चतुरी जैसे कुएँ में डूबता हुआ उभरा। ‘तो तुम्हारा क्या इरादा है ?’ उसे देखते हुए मैंने पूछा।
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आज ही बाबू सीताराम जी, गौरी को देखने या अपने आपको दिखलाने आवेंगे।
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लेकिन उस को अपने दुख का शदीद एहसास उस वक़्त हुआ जब उस को मीठा बरस लगा और उस की माँ ने उस का बाहर आना जाना क़तई तौर पर बंद कर दिया और उस पर कड़े पर्दे की पाबंदी आइद कर दी।
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अर्जुन शिकायत न करता था।
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परदे पर राम-बन-गमन की तसवीर है।
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उसकी गाड़ी में फिर चंपा का फूल खिला।
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खाने-पीने के बाद लालमोहर के दल ने अपना बासा तोड़ दिया।
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लालबिहारी जोर से बोला--अभी परसों घी आया है।
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ता-ता थेई-थेई, ता-ता थेई-थेई…मदमत्ता मातंगिनी उलंगिनी – जी भरकर नाचो! बाहर कलरव-कोलाहल बढ़ता ही जाता है।
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ऐसा जान पड़ा, भोला उसकी ओर तिरस्कार की आँखों से देख रहा है।
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आनंदी कहॉँ जाते हो?
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' राजा के भानजे ने सुना।
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‘‘आचार्य जी, आगे जाने की ज़रूरत नहीं।
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मुझे यह बौड़म का लकब मिला है।
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शास्‍त्री जी अपनी मेज की सजावट तथा प्रतीक्षा करते रोगियों के समय काटने के विचार से' तारा' के ग्राहक थे।
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आज रात चाँद गरहन था।
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पिता ने स्नेह से पुत्री से कहा, बेटा जरा चलो, चलती हो न? गौरी ने कोई उत्तर न दिया।
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मुलिया से कभी बोलोगे तो समझ लेना, जहर खा लूँगी।
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कभी-कभी तो उससे बाट का काम भी लिया जाता है।
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पाट के पौधे! तो अलान, तो फलान! इतनी आँखों की धार भला फसल सहे! जहाँ पंद्रह मन पाट होना चाहिए, सिर्फ दस मन पाट काँटा पर तौल के ओजन हुआ भगत के यहाँ। ...
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ग्यारह बजे गॉँव में हलचल मच गई।
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रात-भर महुआ रोती-छटपटाती रही।
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तुम बाजार उठने पर जाओगे, देर होगी। ’
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एक बार उसे मजबूरन अपनी माँ के साथ कराची जाना पड़ा वो भी फ़ौरी तौर पर नसीमा घर में मौजूद नहीं थी
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तेरे घर से यह सेर भर खली लेता आया हूँ।
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आज उसी बी. डी. इसरानी का शुमार हांगकांग के अमीर तरीन लोगों में होता है।
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इतने बड़े सत्पात्र के माथे पर कलंक का इतना बड़ा दाग किस दुष्ट ग्रह ने इतना प्रचार करके गाजे-बाजे से समारोह करके आंक दिया?
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दो सौ लाशें थीं।
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सम्भवतः ऐसी घड़ी में वातावरण में ऑक्सिजन की कमी हो जाती है।
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टप्पर के अंदर झाँक कर इशारे से कहा- दिन ढल गया! गाड़ी में बैलों को जोतते समय उसने गाड़ीवानों के सवालों का कोई जवाब नहीं दिया।
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एक-बार उसने पारो की सहेलियों से आजिज़ आकर उन्हें भी डाँट पिलाई।
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अच्छा तो बैठो, लड़की के शरीर से सारा गहना उतारकर लाता हूं।
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शायद एक नन्हा सा नाज़ुक बदन बाबू बनने के बाद इन्सान एक बदज़ेब बे-डोल सा पण्डित बनना चाहता है...
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चेहरे पर इस की आँखें बहुत अजीब थीं।
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बुलंद-ओ-बाला तिनकों के नीचे मख़मलें दूब पर कहीं कहीं बर्फ़ के टुकड़े सपीद फूलों की तरह खुले हुए नज़र आरहे थे।
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अब देखती हूँ, तो निरे मिट्टी के लोंदे हो।
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अब वो दूर से पारो को अपने घर से निकलते देख सकता था।
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भूल-चूक माफ करो महाबीर बाबा! मनौती दूनी करके चढ़ाएगी बिरजू की माँ !...
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चारों ओर गौने की साड़ी की खसखसाहट-जैसी आवाज होती है।
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वह अपने चारों ओर की चीजों से बढ़कर थी- रजनीगंधा की शुभ्र मंजरी के समान सरल वृंत के ऊपर स्थित, जिस वृक्ष पर खिली थी उसका एकदम अतिक्रमण कर गई थी।
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यह बेईमानी है, बहुत हो, तो दो-चार रुपये का नुकसान हुआ होगा।
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- आम बाबूजी ने तुम्‍हारे यहां कभी और भिजवाए हैं?
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ख़ी ख़ी... बाबू है न।
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विवाह के वस्त्रों और अलंकारों में लिपटी हुई बेचारी मिनी मारे लज्जा के सिकुड़ी हुई-सी मेरे पास आकर खड़ी हो गई।
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इतनी भारी कि बेचारे अल्ला रखे के लिए उसमें सांस लेना भी कठिन हो गया था।
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सरग़ना अपने इलाक़े का सबसे बड़ा जागीरदार था और अपने लहू की रवानी में मुक़द्दस जिहाद की गूंज सुन रहा था।
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उस को अब हर वक़्त घर की चार दीवारी में रहना पड़ता।
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खलील- ( लड़के से ) क्यों बेटा, तुम शक्कर ले कर सीधे घर चले गये थे?
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वो उसे पहले से ज़्यादा सताने लगी।
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“हाय उन्हें क्या काम करने की ज़रूरत है लाखों रुपय की जायदाद है मकानों और दुकानों से किराया ही हर महीने दो हज़ार के क़रीब वसूल हो जाता है
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सुनार बुलाया गया।
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अलबत्ता जब सुंदरलाल सो जाता तो उसे देखा करती और अपनी इस चोरी में पकड़ी जाती।
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एक महीना पहले से ही मैया कहती थी, बलरामपुर के नाच के दिन मीठी रोटी बनेगी, चंपिया छींट की साड़ी पहनेगी, बिरजू पैंट पहनेगा, बैलगाड़ी पर चढ़ कर- चंपिया की भीगी पलकों पर एक बूँद आँसू आ गया।
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हमरी संवाद लेले जाहु रे संवदिया या-या !...’’ बड़ी बहुरिया के संवाद का प्रत्येक शब्द उसके मन में कांटे की तरह चुभ रहा है- किसके भरोसे यहां रहूंगी?
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उसका मंत्र है, काम निकल जाने पर बेटा बाप का नहीं होता।
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उसके कपड़े—पाजामा, कमीज़, वास्कट, चादर और पटका—सभी बहुत मैले थे।
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इन्हीं दिनों पिछले साल भी अनाज माँड़ा गया था।
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उसके बाद से जितनी देर तक सो नहीं पाती है, उस समय का एक पल भी वह चुप्पी में नहीं खोती।
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आखिर भोजन करते भी तो कैसे?
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क्‍या तुम वही हो जिसका मजमुआ-ए-कलाम-ए-अक्‍स के फूल हाल ही में प्रकाशित हुआ है।
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माता-पिता चाहे जिसके साथ उसकी शादी कर दें, वह सुखी रहेगी। न करें तो भी वह सुखी है।
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इस वक्त एक सौ चार डिग्री बुखार है।
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सुंदर लाल! तुम इस बात की महानता को नहीं जानते। ” “हाँ बाबा” सुंदर लाल बाबू ने कहा — “ इस संसार में बहुत सी बातें हैं जो मेरी समझ में नहीं आतीं।
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पन्ना की बात पूरी भी न हुई थी कि रग्घू ने नारियल कोने में रख दिया और बाग की तरफ चला।
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चारों तरफ़ अंधेरा ही अंधेरा था और दूर, असाढ़ी से हल्की हल्की आवाज़ें आ रही थीं।
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उसके सभी साथी साहब को देखकर दूर हट गये।
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ख़ूबसूरत लबों ने उनका ताज़ा रस चूसा और उन्हें अपने घर की छत पर ले जाकर सूखने के लिए रख दिया कि जब ये जर वालो सूख जाऐंगे, जब एक बिहार गुज़र जाएगी और दूसरी बहार आने को होगी तो मैं आऊँगा और उनकी लज़्ज़त से लुतफ़ अंदोज़ हो सकूँगा।
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वहाँ जाने पर मालूम हुआ कि राजा रामनाथसिंह रामेश्वरजी के दर्शन कर कुछ दिनों से ठहरे हुए हैं, उसे मिल आने के लिए बुलावा भेजा था।
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उसने दारोगा को समझाया-' हुजूर, मैं समझ गया।
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पति के चले जाने से, शशि को दुधमुंहे भाई पर बड़ा क्रोध आया।
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उन्ही लोगों ने जो अभी मारने पे तुले थे, अपने नीचे से पीपल की गूलरें हटा दीं, और फिर से बैठते हुए बोल उठे।
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तकशीला के स्टेशन पर मुझे बहुत अर्से तक खड़ा रहना पड़ा, ना जाने किस का इंतिज़ार था, शायद आस-पास के गांव से हिंदू पनाह गज़ीं आरहे थे, जब गार्ड ने स्टेशन मास्टर से बार-बार पूछा तो उसने कहा ये गाड़ी आगे न जा सकेगी।
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अब मय्या, रसीला, बड़ा लड़का शीबू और होली सब समुंद्र की तरफ़ जा रहे थे।
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सुनार ने हाथ में गहने उठाकर कहा, इन्हें क्या देखूं।
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लेकिन नींद आएगी भी?
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दीवार की आड़ में रह गया।
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छोटे कद और दुबले शरीरवाली भक्तिन अपने पतले ओठों के कानों में दृढ़ संकल्प और छोटी आँखों में एक विचित्र समझदारी लेकर जिस दिन पहले-पहले मेरे पास आ उपस्थित हुई थी तब से आज तक एक युग का समय बीत चुका है।
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कोई भारी आवाज़ में गाने लगता है।
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प्राय: उसके उचित- अनुचित सारे हठ पूरे हुआ करते थे।
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कुछ-कुछ अंकुर जैसे पंख निकलते ही वे पक्षि-शावक उड़ने के असफल प्रयास में रोशनदानों से नीचे गिरने लगते हैं।
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मारो मत, धीरे धीरे चलने दो। जल्दी क्या है!' हिरामन के सामने सवाल उपस्थित हुआ, वह क्या कह कर' गप' करे हीराबाई से?' तोहे' कहे या' अहाँ'?
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सारा वातावरण काफी शरारत भरा और भयानक बना हुआ था।
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पूरियों की तरफ राधाकृष्ण ने देखा भी नहीं।
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तू मार, और मार...। ” तीन-चार व्यक्तियों के रोकने पर वह व्यक्ति मारने से हटा। उसकी पत्नी लोगों को सुनाकर कहने लगी, “ इतना-सा है, मगर है पक्का चोर।
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इस कैफ़ियत में मर्द को ठुकरा देना मामूली बात नहीं होती।
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गो जज्मानी की तवज्जो को खींचने वाले फ़िक़रे से उस की ख़्वाहिश का पता नहीं चलता।
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शहज़ादा सलीम ने ख़ास एहतिमाम कर लिया था कि फूल, अनार की कलियां हों वो धड़कते हुए दिल के साथ मसहरी की तरफ़ बढ़ा और दूल्हन के पास बैठ गया
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