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एक दिन किसी अधिक ऊँचाई पर बसे पर्वतीय ग्राम से बर्फ में भटकता हुआ एक भूटिया कुता दूकान पर आ गया और लूसी से उसकी मैत्री हो गई।
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हालांकि खाएगा नहीं।
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भौंको कुत्तो, भौंको..." उसकी भौजाई दोनों बच्चों के साथ गेट के पास खड़ी इन्तज़ार कर रही थी।
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अब मुझे अपने जिस्म के ज़र्रे ज़र्रे से घिन्न आने लगी।
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‘घरनी’ धानी घर छोड़कर मायके भागी जा रही है और उसका घरवाला ( पुरुष ) उसको मनाकर राह से लौटाने गया है।
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भूरी पूसी भी अपने चूहे जैसे नि:सहाय बच्चों को तीखे पैने दाँतों में ऐसी कोमलता से दबाकर कभी लाती, कभी ले जाती थी कि उनके कहीं एक दाँत भी न चुभ पाता था।
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एक दफ़ा उसने बजाय पारो के ख़ुद से हिसाब में घपला कर दिया।
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मुलिया ने कुछ नहीं खाया और पन्ना भी भूखी रही।
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उत्सुक आँखों की भीड़ ने उसे आते देखा, तो वह फिर बोलने लगा," चूहों की तरह बिटर-बिटर देखने में कुछ नहीं होता।
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लेकिन कभी तो ऐसी गुदगुदी नहीं लगी पीठ में! कंट्रोल का जमाना! हिरामन कभी भूल सकता है उस जमाने को! एक बार चार खेप सीमेंट और कपड़े की गाँठों से भरी गाड़ी, जोगबानी में विराटनगर पहुँचने के बाद हिरामन का कलेजा पोख्ता हो गया था।
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अंदर जा कर उसने गागर बगल में दबा ली और बटलोई हाथ में लटका ली।
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...बड़ी हवेली की लछमी को पहली बार इस तरह सिसकते देखा है हरगोबिन ने।
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' सावित्री ने कहा-'' यहाँ तो बहुत जोरों का दंगा हो गया है।
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सिपाही वगैरा की चारों ओर धूम मची हुई थी।
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बड़ी बहुरिया के बड़े भाई ने पहले हरगोबिन को नहीं पहचाना।
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इन लोगों को जो पाकिस्तान में पनाह गजीं और हिन्दोस्तान में शरणार्थी कहलाते थे उस वक़्त तक चैन का सांस न आया जब तक मैंने पंजाब की रूमानख़ेज़ सरज़मीन की तरफ़ क़दम न बढ़ाए, ये लोग शक्ल-ओ-सूरत से बिल्कुल पठान मालूम होते थे, गोरे चिट्टे मज़बूत हाथ पांव, सिर पर कुलाह और लुंगी, और जिस्म पर क़मीज़ और शलवार, ये लोग पश्तो में बात करते थे और कभी कभी निहायत करख़्त क़िस्म की पंजाबी में बात करते थे।
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हिरामन ने पहले ही कहा था,' यह बीस विषावेगा!' दारोगा साहब उसकी गाड़ी में दुबके हुए मुनीम जी पर रोशनी डाल कर पिशाची हँसी हँसे-' हा-हा-हा! मुनीम जी-ई-ई-ई! ही-ही-ही! ऐ-य, साला गाड़ीवान, मुँह क्या देखता है रे-ए-ए! कंबल हटाओ इस बोरे के मुँह पर से!' हाथ की छोटी लाठी से मुनीम जी के पेट में खोंचा मारते हुए कहा था,' इस बोरे को! स-स्साला!' बहुत पुरानी अखज-अदावत होगी दारोगा साहब और मुनीम जी में।
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उसी समय उसे वही चिरपरिचित स्वर सुनाई पड़ा-" अम्मा!'' सावित्री दौड़कर बाहर आई उसने देखा, उसके तीनों बच्चे खान के साथ सकुशल लौट आए हैं।
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इस के लब-ओ-लहजे से मालूम होता था कि नाशाइस्ता फ़िक़रे किस रहा है।
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रैटन! फाय फो! रात को बेचारे घूम-घूमकर पहरा देते हैं, नहीं चोरियॉँ हो जाऍं।
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रंग-रहित पैरों को गर्वीली गति ने एक नयी गरिमा से रंजित कर दिया।
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पलटदास हर रात नौटंकी शुरू होने के समय श्रद्धापूर्वक स्टेज को नमस्कार करता, हाथ जोड़ कर।
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वो आँखें पोंछते पोंछते मेरी तरफ़ हैरत से देखने लगा।
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वो सब बची कुची चीज़ें, हलवा, दाल, तोड़े हुए लुक़्मे, पकोड़ियाँ, मिले हुए आलू मटर और चावल उस बिछी हुई चादर या एलूमीनियम के एक बड़े से ज़ंग-आलूदा तसले में डाल देते।
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आज हमारी सीता निर्दोश घर से निकाल दी गई है— —
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बारहा कहा, भई जरा सोच तो अभी इनमें मोर की कोई खासियत भी है कि तू इतनी बड़ी कीमत ही माँगने चला!
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लेकिन इसके बाद ही दुखनी मोदिआइन लाल मोदिआइन हो गयी।
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मुलिया— दाग-साग सब मिट जायगा।
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नीचे के सामान ऊपर किए जा रहे थे।
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दिन भर मुझे उसका ख्याल बना रहा।
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खेत में पाट लगा देख कर गाँव के लोगों की छाती फटने लगी, धरती फोड़ कर पाट लगा है, बैसाखी बादलों की तरह उमड़ते आ रहे हैं
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गुरू जी!' बक्सा ढोनेवाला आदमी आज कोट-पतलून पहन कर बाबूसाहब बन गया है।
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कंपनी की औरत भी ऐसी होती है?
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नीलू की कथा उसकी माँ की कथा से इस प्रकार जुड़ी है कि एक के बिना दूसरी अपूर्ण रह जाती है।
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पर मेरे चिरंजीव ने चार ही दिन में अर्जुन की सारी कमजोरियों का पता लगा लिया, और समय-असमय उसे घर बुलाकर ( मेरी गैर-हाजिरी में ) उन्हीं कमजोरियों के रास्ते उसकी जीभ को दौड़ाते हुए अपना मनोरंजन करने लगे, मुझे बाद में मालूम हुआ।
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चारों ओर निविड़ अंधकार छा गया।
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जब मेरे कमरे का कायाकल्प चिड़ियाखाने के रूप में होने लगा, तब मैंने बड़ी कठिनाई से दोनों चिड़ियों को पकड़कर जाली के बड़े घर में पहुँचाया, जो मेरे जीव-जन्तुओं का सामान्य निवास है।
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फिर उसकी नज़र मलाबार हिल की तरफ़ से आती बसों और कारों की पंक्ति पर स्थिर हो गयी।
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घर पर तौला तो 2 सेर हुई।
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तुम्हें कोई तरद्दुद नहीं करना चाहिए। ”
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उनकी अवस्था चालीस के ही आस-पास होगी।
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आता क्यूँ नहीं। दो सौ कपड़े पड़े हैं .. .
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फिर वो कहता —
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पॉँच घड़े तो तेरी भैंस पी जाती है।
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पन्ना— गाली कैसी, देवर ही तो है! मुलिया— मुझ जैसी बुढ़िया को वह क्यों पूछेंगे?
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अपीलहीन फैसला हुआ कि चाहे उन दोनों में एक सच्चा हो चाहें दोनों झूठे; पर जब वे एक कोठरी से निकले, तब उनका पति-पत्नी के रूप में रहना ही कलियुग के दोष का परिमार्जन कर सकता है।
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पंद्रह साल की है।
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तो संसार से विदा हो गई।
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उसकी सहेलियाँ भी रुक गईं।
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किसी विदेश का नाम आगे आते ही मेरा मन वहीं की उड़ान लगाने लगता है।
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उसके नाम पर कलंक लगाएँ?
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“आलू-मटर, आलू-टमाटर, भुर्ता, भिंडी, कोफ्ता, रायता ...” वह जल्दी-जल्दी लम्बी सूची बोल गया। “कितनी देर में ले आओगे?”
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दोनों टोकरे और उन की घास यूं चली जाती।
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हाय! करमवा, होय करमवा .... गाड़ी की बल्ली पर उँगलियों से ताल दे कर गीत को काट दिया
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अच्छा?' हिरामन हाथ में थैली ले कर चुपचाप खड़ा रहा।
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लड़की हिंदी में बोली, नहीं, हम डिब्बा नहीं छोड़ेंगे।
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वो बड़े इतमीनान से अपने पेट पर धीरे धीरे हाथ फेरते कह रहा था।
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मुकदमा ख़त्म हो जाने पर राय साहब ने उनसे माफ़ी मांगते हुए कहा,' क्षमा करना भाई, इस पापी पेट के कारण लाचार हैं, वरना क्या हमारे दिल में देश-प्रेम नहीं है?
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“मुझे उसके साथ के कारण एक आत्मिक प्रसन्नता प्राप्त होती है, ”
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हिरामन ने इशारे से सभी को चुप किया।
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दोनों कोठे साथ साथ थे चुनांचे चंद जुमलों ही में दोनों मुतआरिफ़ होगईं।
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बिल्कुल न डरना। अमीना का दिल कचोट रहा है।
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महमूद गिनता है, एक-दो, दस,-बारह, उसके पास बारह पैसे हैं।
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हाँ ये हिंदू औरतें हैं, हम उन्हें रावलपिंडी से उनके आरामदेह घरों, उनके ख़ुशहाल घरानों, उनके इज़्ज़तदार माँ-बाप से छीन कर लाए हैं।
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एक दिन मुझे किसी कार्य से नखासकोने से निकलना पड़ा और बड़े मियाँ ने पहले के समान कार को रोक लिया।
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“तो इस में मेरा क्या क़ुसूर है? ”
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हिरामन अपनी गाड़ी को तिरपाल से घेर रहा है, गाड़ीवान-पट्टी में।
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वह उनका बहुत आदर करता था।
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एक दिन शास्‍त्री जी के पूछने पर एक ने कहा,' छायावाद का अर्थ है शिष्‍टतावाद; छायावादी का अर्थ है सुंदर साफ वस्‍त्र और शिष्‍ट भाषा धारण करने वाला; जो छायावादी है, वह सुवेश और मधुरभाषी है; जो छायावादी नहीं है वह काशी के शास्त्रियों की तरह अंगोछा पहनने वाला है या नंगा है।' दूसरे दिन दो थे। नहा रहे थे।
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अच्‍छा, नमस्‍कार!' शास्‍त्री जी का ब्‍याह हो गया।
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यदि परिस्थितियों के कारण एक व्यक्ति का स्वामित्व उसे सुलभ नहीं होता, तो वह सबके साथ सहचर-जैसा आचरण करने लगता है।
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उन्हें कायदे के अनुसार हर महीने उनका कुशल-समाचार मिल जाता था, पर बच्चों की चिंता उन्हें लगातार बनी ही रहती थी।
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' जवाब सुनकर राजा नें पूरे मामले को भली-भाँति और साफ-साफ तौर से समझ लिया।
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उसकी स्मृति सदा बनी रहेगी।
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मालूम नहीं क्यों?
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दो एक गाहक आए मगर वो नए थे और उसे जानते नहीं थे।
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कोई कोई लफ़्ज़ होली के कान में भी पड़ जाता ... .
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रहमत का ध्यान धीरे-धीरे मन से बिल्कुल उतर गया।
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यह नहीं कि रुपये के लिए जान दे दे।
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काले पत्थरे के बुत के पास पहुँचकर उसने उसकी दो परिक्रमाएँ लीं, और भागता हुआ वहाँ पहुँच गया जहाँ एक परिवार के छ:-सात लोगों में एक गेंद को ऊँची से ऊँची उछालने की प्रतियोगिता चल रही थी।
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जब न्यायाधीश के साथ-साथ न्याय में भी अन्तर आने लगा तब हमेशा ही निर्दोष नीलमणि को कड़ा-से-कड़ा दण्ड भुगतना पड़ता।
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बक्सा ढोनेवाले नौकर से गाड़ी-भाड़ा में मोल-मोलाई करने की कोशिश की तो ओढ़नीवाली ने सिर हिला कर मना कर दिया।
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वो गरमीयों में आम तौर पर ग़ुसलख़ाने के अंदर ठंडे फ़र्श पर चटाई बिछा कर लेटा करता था।
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पुरुष ने लड़के की चीज़ें गुस्से में दूर फेंकते हुए कहा, “जा, ले जा अपनी चीज़ें माँ के पास। ” अँधेरे में ताँबे की चमक कुछ दूर तक दिखाई दी, फिर पता नहीं क्या कहाँ जा गिरा।
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तोता एक खपरैल पर बैठा था।
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वह सोच रहा था, काकी ने लड़कों को खिला-पिला दिया, मुझसे पूछा तक नहीं।
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“साले, भागना चाहता है? ”
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मैं तुम्हारा बेटा! बड़ी बहुरिया, तुम मेरी मां, सारे गांव की मां हो! मैं अब निठल्ला बैठा नहीं रहूंगा।
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वो जानता था कि वो निशान आज दोपहर तक उभरते हुए ईज़ा-रसाँ आबले बन जाएँगे और श्राद्ध की ख़ैर खाने के लिए उस की उंगलियाँ यकजा न हो सकेंगी, ताहम नुसरत की एक हल्की सी सुर्ख़ी उस के चेहरे पर फैल गई।
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सारी जड़ से उखाड़कर खेत से बाहर फेंक देते हैं।
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रग्घू— रुपये-पैसे तेरे हाथ में देने लगूँ तो दुनिया क्या कहेगी, यह तो सोच।
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मुगदर की जोड़ी उन्होंने ही बनवा दी थी।
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ज़ुबेदा बार बार कहती “मुझे अब ज़्यादा औलाद नहीं चाहिए, पहले ही क्या कम है। ”
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रात के साथ-साथ नीरवता बढ़ चली।
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उसने झटके से पुरुष के हाथ से अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश की।
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काफ़ी देर पड़े रहने के बाद लड़का रेत से उठ खड़ा हुआ, और आँखों से ज़मीन को टटोलता घिसटते पैरों से चलने लगा।
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सरदार ने छड़ीदार को भेजा।
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मैंने दोनों हाथ, उस की कमर में डाल दिए और उसे ज़ोर ज़ोर से अपने सीने से लगा लिया।
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ये बातें हो ही रही थीं कि सहसा तीन-चार आदमी एक बनिये को पकड़े, घसीटते हुए आते दिखायी दिये।
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“किस बात का.... बेटा?” “तुम्हें आज दोपहर को मुझे कहानी सुनानी है। ”
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