|
{ |
|
"examples": [ |
|
{ |
|
"text": "मन्दं मन्दं नुदति पवनश्चानुकूलो यथा त्वं\nआलोकः प्रियतम इव प्रेक्षते त्वां सुमेरो।\nछायेवानुगतमनुगा दाक्षिणात्येन गङ्गा\nशृङ्गैः पश्य प्रणयभृतः प्रस्थमाश्लिष्यतीव॥", |
|
"meter": "मन्दाक्रान्ता", |
|
"topic": "धर्मः", |
|
"pattern": "MMMTGJTGLGG", |
|
"source": "Traditional" |
|
}, |
|
{ |
|
"text": "आयाताः सकलार्थसिद्धिसमये संप्राप्तकल्पद्रुमाः\nप्राप्ताः शीतलचन्द्रिकासुखभुवो निर्वाणवापीसमाः।\nहे नाथ त्वदपाङ्गलब्धसुकृतास्त्वत्सेवकाः सेवकाः\nत्वां वीक्ष्य प्रणमन्ति ये परमिदं तेषां किमाश्चर्यतः॥", |
|
"meter": "शार्दूलविक्रीडितम्", |
|
"topic": "प्रकृतिः", |
|
"pattern": "MSMSJTGJGLG", |
|
"source": "Traditional" |
|
}, |
|
{ |
|
"text": "अनेकाश्चिन्ताभिः क्षयमुपगतस्यापि वपुषो\nन मुञ्चन्त्यापन्नं मुहुरपि कृपणं विधिवशात्।\nअलभ्यैः कामैर्यैः कृतमिह जनैर्दुःखमधिकं\nन जाने को हेतुर्विषयविषमूर्च्छातुरमनाम्॥", |
|
"meter": "शिखरिणी", |
|
"topic": "प्रकृतिः", |
|
"pattern": "YMNSJTGJGLG", |
|
"source": "Traditional" |
|
}, |
|
{ |
|
"text": "कनकरुचिरवर्णा कामिनीकामरूपा\nकमलनयनकान्ता कोमलाङ्गी किशोरी।\nकलितललितवेषा कोकिलालापवाणी\nकलयतु कुशलं नः कालिका कामरूपा॥", |
|
"meter": "मालिनी", |
|
"topic": "प्रकृतिः", |
|
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|
"source": "Traditional" |
|
}, |
|
{ |
|
"text": "प्रभो शङ्कर स्वामिन् विश्वनाथ महेश्वर।\nगिरीश नीलकण्ठ त्वं गङ्गाधर वृषध्वज॥", |
|
"meter": "भुजङ्गप्रयातम्", |
|
"topic": "धर्मः", |
|
"pattern": "YYYJG", |
|
"source": "Traditional" |
|
}, |
|
{ |
|
"text": "अनेकाश्चिन्ताभिः क्षयमुपगतस्यापि वपुषो\nन मुञ्चन्त्यापन्नं मुहुरपि कृपणं विधिवशात्।\nअलभ्यैः कामैर्यैः कृतमिह जनैर्दुःखमधिकं\nन जाने को हेतुर्विषयविषमूर्च्छातुरमनाम्॥", |
|
"meter": "शिखरिणी", |
|
"topic": "प्रकृतिः", |
|
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|
"source": "Generated" |
|
}, |
|
{ |
|
"text": "सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयान्न ब्रूयात् सत्यमप्रियम्।\nप्रियं च नानृतं ब्रूयादेष धर्मः सनातनः॥", |
|
"meter": "वसन्ततिलका", |
|
"topic": "प्रकृतिः", |
|
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|
"source": "Traditional" |
|
}, |
|
{ |
|
"text": "यदा यदा हि धर्मस्य\nग्लानिर्भवति भारत।\nअभ्युत्थानमधर्मस्य\nतदात्मानं सृजाम्यहम्॥", |
|
"meter": "अनुष्टुभ्", |
|
"topic": "प्रकृतिः", |
|
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|
"source": "Traditional" |
|
}, |
|
{ |
|
"text": "आयाताः सकलार्थसिद्धिसमये संप्राप्तकल्पद्रुमाः\nप्राप्ताः शीतलचन्द्रिकासुखभुवो निर्वाणवापीसमाः।\nहे नाथ त्वदपाङ्गलब्धसुकृतास्त्वत्सेवकाः सेवकाः\nत्वां वीक्ष्य प्रणमन्ति ये परमिदं तेषां किमाश्चर्यतः॥", |
|
"meter": "शार्दूलविक्रीडितम्", |
|
"topic": "ज्ञानम्", |
|
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|
"source": "Traditional" |
|
}, |
|
{ |
|
"text": "अनेकाश्चिन्ताभिः क्षयमुपगतस्यापि वपुषो\nन मुञ्चन्त्यापन्नं मुहुरपि कृपणं विधिवशात्।\nअलभ्यैः कामैर्यैः कृतमिह जनैर्दुःखमधिकं\nन जाने को हेतुर्विषयविषमूर्च्छातुरमनाम्॥", |
|
"meter": "शिखरिणी", |
|
"topic": "ज्ञानम्", |
|
"pattern": "YMNSJTGJGLG", |
|
"source": "Traditional" |
|
}, |
|
{ |
|
"text": "सरसिजनयने सरसिजहस्ते\nधवलतरांशुकगन्धमाल्यशोभे।\nभगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे\nत्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम्॥", |
|
"meter": "द्रुतविलम्बितम्", |
|
"topic": "धर्मः", |
|
"pattern": "NBLGLG", |
|
"source": "Traditional" |
|
}, |
|
{ |
|
"text": "शान्तं पदं तत्परमं विशोकं\nज्ञात्वा मुनिः शाम्यति नान्यथा हि।\nतस्मिन् स्थितो न विषीदते क्वचित्\nज्ञात्वा तमेवं विजहाति दुःखम्॥", |
|
"meter": "इन्द्रवज्रा", |
|
"topic": "प्रेम", |
|
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|
"source": "Generated" |
|
}, |
|
{ |
|
"text": "सूर्यस्य तेजो नलिनीं विकासयत्\nचन्द्रस्य शीतांशुरपि प्रमोदयेत्।\nवाणी सुधासिक्तमिवार्थमुत्तमं\nप्रीणाति चेतः सुधियां सदैव हि॥", |
|
"meter": "वसन्ततिलका", |
|
"topic": "भक्तिः", |
|
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|
"source": "Generated" |
|
}, |
|
{ |
|
"text": "अहो विचित्रा खलु कर्मगाथा\nन कर्मणा बध्यति कर्मयोगी।\nन कर्मणा मुच्यति कर्महीनः\nतथापि कर्मैव हि मोक्षमार्गः॥", |
|
"meter": "उपेन्द्रवज्रा", |
|
"topic": "भक्तिः", |
|
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|
"source": "Generated" |
|
}, |
|
{ |
|
"text": "ध्यायेद्देवं गगनसदृशं व्योमरूपं शिवाख्यं\nनित्यं शुद्धं विगतकलुषं ज्ञानमूर्तिं शिवं च।\nआधारं सर्वविद्यानां शङ्करं लोकशङ्करं\nतं वन्दे परमानन्दं चिदानन्दं सदाशिवम्॥", |
|
"meter": "शार्दूलविक्रीडितम्", |
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"topic": "चन्द्रः", |
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|
"source": "Generated" |
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}, |
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{ |
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"text": "कमलनयनपादं कामकोटिप्रकाशं\nसकलभुवनवन्द्यं सर्वलोकैकनाथम्।\nअमलविमलरूपं चन्द्रचूडं त्रिनेत्रं\nभजत भवभयध्नं भास्वरं भूतनाथम्॥", |
|
"meter": "मालिनी", |
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"topic": "सूर्यः", |
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"source": "Generated" |
|
}, |
|
{ |
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"text": "धर्मो रक्षति रक्षितः\nसत्यं वदति सर्वदा।\nज्ञानं ददाति विनयं\nविद्या ददाति पात्रताम्॥", |
|
"meter": "अनुष्टुभ्", |
|
"topic": "ज्ञानम्", |
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|
"source": "Traditional" |
|
}, |
|
{ |
|
"text": "यस्मिन् जगत्सर्वमिदं प्रतिष्ठितं\nयस्माज्जगत्सर्वमिदं प्रसूयते।\nयत्प्रेरितं लोकमिदं प्रवर्तते\nतद्ब्रह्म तत्त्वं परमं विजानत॥", |
|
"meter": "इन्द्रवज्रा", |
|
"topic": "प्रकृतिः", |
|
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|
"source": "Traditional" |
|
}, |
|
{ |
|
"text": "मन्दं मन्दं नुदति पवनश्चानुकूलो यथा त्वं\nआलोकः प्रियतम इव प्रेक्षते त्वां सुमेरो।\nछायेवानुगतमनुगा दाक्षिणात्येन गङ्गा\nशृङ्गैः पश्य प्रणयभृतः प्रस्थमाश्लिष्यतीव॥", |
|
"meter": "मन्दाक्रान्ता", |
|
"topic": "ज्ञानम्", |
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|
"source": "Traditional" |
|
}, |
|
{ |
|
"text": "सरसिजनयने सरसिजहस्ते\nधवलतरांशुकगन्धमाल्यशोभे।\nभगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे\nत्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम्॥", |
|
"meter": "द्रुतविलम्बितम्", |
|
"topic": "प्रेम", |
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|
"source": "Generated" |
|
}, |
|
{ |
|
"text": "करुणया परया परिपूर्णो\nभवतु मे हृदये परमात्मा।\nकमलनयन कमलासन\nकमलवासिनि देहि कृपां मे॥", |
|
"meter": "द्रुतविलम्बितम्", |
|
"topic": "धर्मः", |
|
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|
"source": "Traditional" |
|
}, |
|
{ |
|
"text": "यस्योदये प्रशमितं तम उल्वणं वै\nलोकस्य यस्य च निमज्जति यत्र लोकः।\nसूर्यं तमेव शरणं व्रज भूतनाथं\nकिं वा बहुप्रलपितैः शृणु तत्त्वमेतत्॥", |
|
"meter": "वसन्ततिलका", |
|
"topic": "धर्मः", |
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|
"source": "Traditional" |
|
}, |
|
{ |
|
"text": "शान्तं पदं तत्परमं विशोकं\nज्ञात्वा मुनिः शाम्यति नान्यथा हि।\nतस्मिन् स्थितो न विषीदते क्वचित्\nज्ञात्वा तमेवं विजहाति दुःखम्॥", |
|
"meter": "इन्द्रवज्रा", |
|
"topic": "धर्मः", |
|
"pattern": "TGTGJGLG", |
|
"source": "Traditional" |
|
}, |
|
{ |
|
"text": "प्रभो शङ्कर स्वामिन् विश्वनाथ महेश्वर।\nगिरीश नीलकण्ठ त्वं गङ्गाधर वृषध्वज॥", |
|
"meter": "भुजङ्गप्रयातम्", |
|
"topic": "ज्ञानम्", |
|
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|
"source": "Traditional" |
|
}, |
|
{ |
|
"text": "गच्छन्ति पुण्यपुरुषाः परलोकमार्गं\nतिष्ठन्ति पापरसिकाः पतने निमग्नाः।\nआकाशगामिपतगाः खलु वायसाद्याः\nयद्वत्तथैव हि नराः सुकृतैर्विहीनाः॥", |
|
"meter": "मन्दाक्रान्ता", |
|
"topic": "ज्ञानम्", |
|
"pattern": "MMMTGJTGLGG", |
|
"source": "Traditional" |
|
}, |
|
{ |
|
"text": "सत्यं ज्ञानमनन्तं च ब्रह्म योऽभ्यस्यते नरः।\nस याति परमां सिद्धिं देवानामपि दुर्लभाम्॥", |
|
"meter": "अनुष्टुभ्", |
|
"topic": "प्रकृतिः", |
|
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|
"source": "Generated" |
|
}, |
|
{ |
|
"text": "यदा यदा धर्मग्लानिर्भवति भारत।\nअभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥", |
|
"meter": "उपेन्द्रवज्रा", |
|
"topic": "प्रकृतिः", |
|
"pattern": "JTGTGJGLG", |
|
"source": "Traditional" |
|
}, |
|
{ |
|
"text": "अनेकाश्चिन्ताभिः क्षयमुपगतस्यापि वपुषो\nन मुञ्चन्त्यापन्नं मुहुरपि कृपणं विधिवशात्।\nअलभ्यैः कामैर्यैः कृतमिह जनैर्दुःखमधिकं\nन जाने को हेतुर्विषयविषमूर्च्छातुरमनाम्॥", |
|
"meter": "शिखरिणी", |
|
"topic": "धर्मः", |
|
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|
"source": "Traditional" |
|
}, |
|
{ |
|
"text": "सरसिजनयने सरसिजहस्ते\nधवलतरांशुकगन्धमाल्यशोभे।\nभगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे\nत्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम्॥", |
|
"meter": "द्रुतविलम्बितम्", |
|
"topic": "शान्तिः", |
|
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|
"source": "Generated" |
|
}, |
|
{ |
|
"text": "अहो विचित्रा खलु कर्मगाथा\nन कर्मणा बध्यति कर्मयोगी।\nन कर्मणा मुच्यति कर्महीनः\nतथापि कर्मैव हि मोक्षमार्गः॥", |
|
"meter": "उपेन्द्रवज्रा", |
|
"topic": "आत्मा", |
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"source": "Generated" |
|
}, |
|
{ |
|
"text": "नमः शिवाय प्रशिवाय साम्बे\nनमः शिवायाद्भुतकर्मणे च।\nनमः शिवायाप्रतिरूपरूपे\nनमः शिवायामितविक्रमाय॥", |
|
"meter": "भुजङ्गप्रयातम्", |
|
"topic": "प्रकृतिः", |
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|
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|
}, |
|
{ |
|
"text": "आकाशे विहरति विहङ्गः पक्षयुक्तो\nभूमौ चैव प्रचलति नरो वाहनैर्वा पदाभ्याम्।\nअम्भोधौ तु प्लवति सततं नौर्नरैः प्रेरिता सा\nज्ञानेनैव प्रविशति जनो मोक्षमार्गं सुदुर्गम्॥", |
|
"meter": "मन्दाक्रान्ता", |
|
"topic": "ज्ञानम्", |
|
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|
"source": "Generated" |
|
}, |
|
{ |
|
"text": "अहो विचित्रा खलु कर्मगाथा\nन कर्मणा बध्यति कर्मयोगी।\nन कर्मणा मुच्यति कर्महीनः\nतथापि कर्मैव हि मोक्षमार्गः॥", |
|
"meter": "उपेन्द्रवज्रा", |
|
"topic": "ज्ञानम्", |
|
"pattern": "JTGTGJGLG", |
|
"source": "Traditional" |
|
}, |
|
{ |
|
"text": "अनेकाश्चिन्ताभिः क्षयमुपगतस्यापि वपुषो\nन मुञ्चन्त्यापन्नं मुहुरपि कृपणं विधिवशात्।\nअलभ्यैः कामैर्यैः कृतमिह जनैर्दुःखमधिकं\nन जाने को हेतुर्विषयविषमूर्च्छातुरमनाम्॥", |
|
"meter": "शिखरिणी", |
|
"topic": "धर्मः", |
|
"pattern": "YMNSJTGJGLG", |
|
"source": "Generated" |
|
}, |
|
{ |
|
"text": "कनकरुचिरवर्णा कामिनीकामरूपा\nकमलनयनकान्ता कोमलाङ्गी किशोरी।\nकलितललितवेषा कोकिलालापवाणी\nकलयतु कुशलं नः कालिका कामरूपा॥", |
|
"meter": "मालिनी", |
|
"topic": "ज्ञानम्", |
|
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|
"source": "Traditional" |
|
}, |
|
{ |
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"text": "करुणया परया परिपूर्णो\nभवतु मे हृदये परमात्मा।\nकमलनयन कमलासन\nकमलवासिनि देहि कृपां मे॥", |
|
"meter": "द्रुतविलम्बितम्", |
|
"topic": "ज्ञानम्", |
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|
"source": "Traditional" |
|
}, |
|
{ |
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"text": "सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयान्न ब्रूयात् सत्यमप्रियम्।\nप्रियं च नानृतं ब्रूयादेष धर्मः सनातनः॥", |
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"topic": "ज्ञानम्", |
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"source": "Traditional" |
|
}, |
|
{ |
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"text": "यस्मिन् जगत्सर्वमिदं प्रतिष्ठितं\nयस्माज्जगत्सर्वमिदं प्रसूयते।\nयत्प्रेरितं लोकमिदं प्रवर्तते\nतद्ब्रह्म तत्त्वं परमं विजानत॥", |
|
"meter": "इन्द्रवज्रा", |
|
"topic": "ज्ञानम्", |
|
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|
"source": "Traditional" |
|
}, |
|
{ |
|
"text": "गच्छन्ति पुण्यपुरुषाः परलोकमार्गं\nतिष्ठन्ति पापरसिकाः पतने निमग्नाः।\nआकाशगामिपतगाः खलु वायसाद्याः\nयद्वत्तथैव हि नराः सुकृतैर्विहीनाः॥", |
|
"meter": "मन्दाक्रान्ता", |
|
"topic": "धर्मः", |
|
"pattern": "MMMTGJTGLGG", |
|
"source": "Traditional" |
|
}, |
|
{ |
|
"text": "आयाताः सकलार्थसिद्धिसमये संप्राप्तकल्पद्रुमाः\nप्राप्ताः शीतलचन्द्रिकासुखभुवो निर्वाणवापीसमाः।\nहे नाथ त्वदपाङ्गलब्धसुकृतास्त्वत्सेवकाः सेवकाः\nत्वां वीक्ष्य प्रणमन्ति ये परमिदं तेषां किमाश्चर्यतः॥", |
|
"meter": "शार्दूलविक्रीडितम्", |
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"topic": "धर्मः", |
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|
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|
{ |
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"text": "सत्यं ज्ञानमनन्तं च ब्रह्म योऽभ्यस्यते नरः।\nस याति परमां सिद्धिं देवानामपि दुर्लभाम्॥", |
|
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"topic": "सूर्यः", |
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|
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|
{ |
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"text": "यस्योदये प्रशमितं तम उल्वणं वै\nलोकस्य यस्य च निमज्जति यत्र लोकः।\nसूर्यं तमेव शरणं व्रज भूतनाथं\nकिं वा बहुप्रलपितैः शृणु तत्त्वमेतत्॥", |
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"topic": "प्रकृतिः", |
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"source": "Traditional" |
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"text": "शान्तं पदं तत्परमं विशोकं\nज्ञात्वा मुनिः शाम्यति नान्यथा हि।\nतस्मिन् स्थितो न विषीदते क्वचित्\nज्ञात्वा तमेवं विजहाति दुःखम्॥", |
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"meter": "इन्द्रवज्रा", |
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"topic": "ज्ञानम्", |
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"source": "Traditional" |
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"text": "सूर्यस्य तेजो नलिनीं विकासयत्\nचन्द्रस्य शीतांशुरपि प्रमोदयेत्।\nवाणी सुधासिक्तमिवार्थमुत्तमं\nप्रीणाति चेतः सुधियां सदैव हि॥", |
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"meter": "वसन्ततिलका", |
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"topic": "प्रेम", |
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"text": "अहो विचित्रा खलु कर्मगाथा\nन कर्मणा बध्यति कर्मयोगी।\nन कर्मणा मुच्यति कर्महीनः\nतथापि कर्मैव हि मोक्षमार्गः॥", |
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"meter": "उपेन्द्रवज्रा", |
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"source": "Traditional" |
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"text": "मातः पृथ्वि! पितः पवन! सुहृदापः! बान्धवाग्ने! सखे व्योमन्!\nभ्रातः सूर्य! प्रणयिनि शशिन्! सर्वमेतत् प्रसादात्।\nयुष्माकं परिपालनेन विरतं कालेन जीवाम्यहं\nयुष्मासु प्रतिपादयामि नियतं देहं प्रसादीकुरुत॥", |
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"meter": "शार्दूलविक्रीडितम्", |
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"topic": "धर्मः", |
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"source": "Traditional" |
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"text": "नमः शिवाय प्रशिवाय साम्बे\nनमः शिवायाद्भुतकर्मणे च।\nनमः शिवायाप्रतिरूपरूपे\nनमः शिवायामितविक्रमाय॥", |
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"meter": "भुजङ्गप्रयातम्", |
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"source": "Traditional" |
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"text": "धर्मो रक्षति रक्षितः\nसत्यं वदति सर्वदा।\nज्ञानं ददाति विनयं\nविद्या ददाति पात्रताम्॥", |
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"meter": "अनुष्टुभ्", |
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"topic": "धर्मः", |
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"source": "Traditional" |
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"text": "यदा यदा हि धर्मस्य\nग्लानिर्भवति भारत।\nअभ्युत्थानमधर्मस्य\nतदात्मानं सृजाम्यहम्॥", |
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"meter": "अनुष्टुभ्", |
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"topic": "ज्ञानम्", |
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"source": "Traditional" |
|
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"text": "कमलनयनपादं कामकोटिप्रकाशं\nसकलभुवनवन्द्यं सर्वलोकैकनाथम्।\nअमलविमलरूपं चन्द्रचूडं त्रिनेत्रं\nभजत भवभयध्नं भास्वरं भूतनाथम्॥", |
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