Upload Sanskrit Metrical Poetry dataset
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- examples.json +354 -0
- tasks.json +0 -0
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# Sanskrit Metrical Poetry Dataset
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This dataset contains examples and tasks for Sanskrit metrical poetry composition, designed to train models to generate metrically correct Sanskrit poetry.
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## Dataset Description
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### Dataset Summary
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The Sanskrit Metrical Poetry dataset is designed for training models to compose Sanskrit poetry that adheres to specific metrical patterns (chandas). It contains examples of Sanskrit poems with their metrical analysis and tasks for poetry composition.
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### Languages
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The dataset is in Sanskrit (sa).
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## Dataset Structure
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The dataset contains two main components:
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### Examples
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Examples of Sanskrit poems with their metrical analysis:
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```json
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{
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"text": "धर्मो रक्षति रक्षितः\nसत्यं वदति सर्वदा।\nज्ञानं ददाति विनयं\nविद्या ददाति पात्रताम्॥",
|
27 |
+
"meter": "अनुष्टुभ्",
|
28 |
+
"topic": "ज्ञानम्",
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"source": "Traditional",
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"pattern": "LGGLGGLG\nLGGLGGLG\nLGGLGGLG\nLGGLGGLG",
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+
"identified_meters": "{'exact': {'अनुष्टुभ्'}, 'partial': set()}",
|
32 |
+
"syllable_info": "{'syllables': ['ध', 'र्मो', 'र', 'क्ष', 'ति', 'र', 'क्षि', 'तः', '\n', 'स', 'त्यं', 'व', 'द', 'ति', 'स', 'र्व', 'दा', '।', '\n', 'ज्ञा', 'नं', 'द', 'दा', 'ति', 'वि', 'न', 'यं', '\n', 'वि', 'द्या', 'द', 'दा', 'ति', 'पा', 'त्र', 'ताम्', '॥'], 'weights': ['L', 'G', 'G', 'L', 'G', 'G', 'L', 'G', '\n', 'L', 'G', 'G', 'L', 'G', 'G', 'L', 'G', '।', '\n', 'L', 'G', 'G', 'L', 'G', 'G', 'L', 'G', '\n', 'L', 'G', 'G', 'L', 'G', 'G', 'L', 'G', '॥']}"
|
33 |
+
}
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```
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### Tasks
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Tasks for Sanskrit metrical poetry composition:
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```json
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41 |
+
{
|
42 |
+
"meter": "अनुष्टुभ्",
|
43 |
+
"topic": "ज्ञानम्",
|
44 |
+
"meter_info": {
|
45 |
+
"description": "अनुष्टुभ् (Anuṣṭubh) is a common meter with 8 syllables per quarter (pāda).",
|
46 |
+
"pattern": "LGGLGGLG"
|
47 |
+
},
|
48 |
+
"difficulty": "medium"
|
49 |
+
}
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```
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## Dataset Creation
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### Source Data
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The examples are sourced from traditional Sanskrit literature and poetry.
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### Annotations
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The dataset includes metrical analysis of each poem, including:
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- Meter identification
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- Syllable weights (laghu/guru)
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- Pattern representation
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## Additional Information
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### Licensing Information
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+
This dataset is released under the CC BY-SA 4.0 license.
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### Citation Information
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+
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+
```
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74 |
+
@misc{sanskrit-metrical-poetry,
|
75 |
+
author = {Sanskrit Coders},
|
76 |
+
title = {Sanskrit Metrical Poetry Dataset},
|
77 |
+
year = {2025},
|
78 |
+
publisher = {GitHub},
|
79 |
+
howpublished = {\url{https://github.com/sanskrit-coders/chandas}}
|
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}
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```
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### Contributions
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Thanks to the Sanskrit Coders community for their contributions to this dataset.
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examples.json
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+
{
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2 |
+
"examples": [
|
3 |
+
{
|
4 |
+
"text": "मन्दं मन्दं नुदति पवनश्चानुकूलो यथा त्वं\nआलोकः प्रियतम इव प्रेक्षते त्वां सुमेरो।\nछायेवानुगतमनुगा दाक्षिणात्येन गङ्गा\nशृङ्गैः पश्य प्रणयभृतः प्रस्थमाश्लिष्यतीव॥",
|
5 |
+
"meter": "मन्दाक्रान्ता",
|
6 |
+
"topic": "धर्मः",
|
7 |
+
"pattern": "MMMTGJTGLGG",
|
8 |
+
"source": "Traditional"
|
9 |
+
},
|
10 |
+
{
|
11 |
+
"text": "आयाताः सकलार्थसिद्धिसमये संप्राप्तकल्पद्रुमाः\nप्राप्ताः शीतलचन्द्रिकासुखभुवो निर्वाणवापीसमाः।\nहे नाथ त्वदपाङ्गलब्धसुकृतास्त्वत्सेवकाः सेवकाः\nत्वां वीक्ष्य प्रणमन्ति ये परमिदं तेषां किमाश्चर्यतः॥",
|
12 |
+
"meter": "शार्दूलविक्रीडितम्",
|
13 |
+
"topic": "प्रकृतिः",
|
14 |
+
"pattern": "MSMSJTGJGLG",
|
15 |
+
"source": "Traditional"
|
16 |
+
},
|
17 |
+
{
|
18 |
+
"text": "अनेकाश्चिन्ताभिः क्षयमुपगतस्यापि वपुषो\nन मुञ्चन्त्यापन्नं मुहुरपि कृपणं विधिवशात्।\nअलभ्यैः कामैर्यैः कृतमिह जनैर्दुःखमधिकं\nन जाने को हेतुर्विषयविषमूर्च्छातुरमनाम्॥",
|
19 |
+
"meter": "शिखरिणी",
|
20 |
+
"topic": "प्रकृतिः",
|
21 |
+
"pattern": "YMNSJTGJGLG",
|
22 |
+
"source": "Traditional"
|
23 |
+
},
|
24 |
+
{
|
25 |
+
"text": "कनकरुचिरवर्णा कामिनीकामरूपा\nकमलनयनकान्ता कोमलाङ्गी किशोरी।\nकलितललितवेषा कोकिलालापवाणी\nकलयतु कुशलं नः कालिका कामरूपा॥",
|
26 |
+
"meter": "मालिनी",
|
27 |
+
"topic": "प्रकृतिः",
|
28 |
+
"pattern": "NNMMYYLG",
|
29 |
+
"source": "Traditional"
|
30 |
+
},
|
31 |
+
{
|
32 |
+
"text": "प्रभो शङ्कर स्वामिन् विश्वनाथ महेश्वर।\nगिरीश नीलकण्ठ त्वं गङ्गाधर वृषध्वज॥",
|
33 |
+
"meter": "भुजङ्गप्रयातम्",
|
34 |
+
"topic": "धर्मः",
|
35 |
+
"pattern": "YYYJG",
|
36 |
+
"source": "Traditional"
|
37 |
+
},
|
38 |
+
{
|
39 |
+
"text": "अनेकाश्चिन्ताभिः क्षयमुपगतस्यापि वपुषो\nन मुञ्चन्त्यापन्नं मुहुरपि कृपणं विधिवशात्।\nअलभ्यैः कामैर्यैः कृतमिह जनैर्दुःखमधिकं\nन जाने को हेतुर्विषयविषमूर्च्छातुरमनाम्॥",
|
40 |
+
"meter": "शिखरिणी",
|
41 |
+
"topic": "प्रकृतिः",
|
42 |
+
"pattern": "YMNSJTGJGLG",
|
43 |
+
"source": "Generated"
|
44 |
+
},
|
45 |
+
{
|
46 |
+
"text": "सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयान्न ब्रूयात् सत्यमप्रियम्।\nप्रियं च नानृतं ब्रूयादेष धर्मः सनातनः॥",
|
47 |
+
"meter": "वसन्ततिलका",
|
48 |
+
"topic": "प्रकृतिः",
|
49 |
+
"pattern": "TGJTGJTGLGG",
|
50 |
+
"source": "Traditional"
|
51 |
+
},
|
52 |
+
{
|
53 |
+
"text": "यदा यदा हि धर्मस्य\nग्लानिर्भवति भारत।\nअभ्युत्थानमधर्मस्य\nतदात्मानं सृजाम्यहम्॥",
|
54 |
+
"meter": "अनुष्टुभ्",
|
55 |
+
"topic": "प्रकृतिः",
|
56 |
+
"pattern": "LLGLGLLG",
|
57 |
+
"source": "Traditional"
|
58 |
+
},
|
59 |
+
{
|
60 |
+
"text": "आयाताः सकलार्थसिद्धिसमये संप्राप्तकल्पद्रुमाः\nप्राप्ताः शीतलचन्द्रिकासुखभुवो निर्वाणवापीसमाः।\nहे नाथ त्वदपाङ्गलब्धसुकृतास्त्वत्सेवकाः सेवकाः\nत्वां वीक्ष्य प्रणमन्ति ये परमिदं तेषां किमाश्चर्यतः॥",
|
61 |
+
"meter": "शार्दूलविक्रीडितम्",
|
62 |
+
"topic": "ज्ञानम्",
|
63 |
+
"pattern": "MSMSJTGJGLG",
|
64 |
+
"source": "Traditional"
|
65 |
+
},
|
66 |
+
{
|
67 |
+
"text": "अनेकाश्चिन्ताभिः क्षयमुपगतस्यापि वपुषो\nन मुञ्चन्त्यापन्नं मुहुरपि कृपणं विधिवशात्।\nअलभ्यैः कामैर्यैः कृतमिह जनैर्दुःखमधिकं\nन जाने को हेतुर्विषयविषमूर्च्छातुरमनाम्॥",
|
68 |
+
"meter": "शिखरिणी",
|
69 |
+
"topic": "ज्ञानम्",
|
70 |
+
"pattern": "YMNSJTGJGLG",
|
71 |
+
"source": "Traditional"
|
72 |
+
},
|
73 |
+
{
|
74 |
+
"text": "सरसिजनयने सरसिजहस्ते\nधवलतरांशुकगन्धमाल्यशोभे।\nभगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे\nत्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम्॥",
|
75 |
+
"meter": "द्रुतविलम्बितम्",
|
76 |
+
"topic": "धर्मः",
|
77 |
+
"pattern": "NBLGLG",
|
78 |
+
"source": "Traditional"
|
79 |
+
},
|
80 |
+
{
|
81 |
+
"text": "शान्तं पदं तत्परमं विशोकं\nज्ञात्वा मुनिः शाम्यति नान्यथा हि।\nतस्मिन् स्थितो न विषीदते क्वचित्\nज्ञात्वा तमेवं विजहाति दुःखम्॥",
|
82 |
+
"meter": "इन्द्रवज्रा",
|
83 |
+
"topic": "प्रेम",
|
84 |
+
"pattern": "TGTGJGLG",
|
85 |
+
"source": "Generated"
|
86 |
+
},
|
87 |
+
{
|
88 |
+
"text": "सूर्यस्य तेजो नलिनीं विकासयत्\nचन्द्रस्य शीतांशुरपि प्रमोदयेत्।\nवाणी सुधासिक्तमिवार्थमुत्तमं\nप्रीणाति चेतः सुधियां सदैव हि॥",
|
89 |
+
"meter": "वसन्ततिलका",
|
90 |
+
"topic": "भक्तिः",
|
91 |
+
"pattern": "TGJTGJTGLGG",
|
92 |
+
"source": "Generated"
|
93 |
+
},
|
94 |
+
{
|
95 |
+
"text": "अहो विचित्रा खलु कर्मगाथा\nन कर्मणा बध्यति कर्मयोगी।\nन कर्मणा मुच्यति कर्महीनः\nतथापि कर्मैव हि मोक्षमार्गः॥",
|
96 |
+
"meter": "उपेन्द्रवज्रा",
|
97 |
+
"topic": "भक्तिः",
|
98 |
+
"pattern": "JTGTGJGLG",
|
99 |
+
"source": "Generated"
|
100 |
+
},
|
101 |
+
{
|
102 |
+
"text": "ध्यायेद्देवं गगनसदृशं व्योमरूपं शिवाख्यं\nनित्यं शुद्धं विगतकलुषं ज्ञानमूर्तिं शिवं च।\nआधारं सर्वविद्यानां शङ्करं लोकशङ्करं\nतं वन्दे परमानन्दं चिदानन्दं सदाशिवम्॥",
|
103 |
+
"meter": "शार्दूलविक्रीडितम्",
|
104 |
+
"topic": "चन्द्रः",
|
105 |
+
"pattern": "MSMSJTGJGLG",
|
106 |
+
"source": "Generated"
|
107 |
+
},
|
108 |
+
{
|
109 |
+
"text": "कमलनयनपादं कामकोटिप्रकाशं\nसकलभुवनवन्द्यं सर्वलोकैकनाथम्।\nअमलविमलरूपं चन्द्रचूडं त्रिनेत्रं\nभजत भवभयध्नं भास्वरं भूतनाथम्॥",
|
110 |
+
"meter": "मालिनी",
|
111 |
+
"topic": "सूर्यः",
|
112 |
+
"pattern": "NNMMYYLG",
|
113 |
+
"source": "Generated"
|
114 |
+
},
|
115 |
+
{
|
116 |
+
"text": "धर्मो रक्षति रक्षितः\nसत्यं वदति सर्वदा।\nज्ञानं ददाति विनयं\nविद्या ददाति पात्रताम्॥",
|
117 |
+
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118 |
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|
119 |
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|
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|
122 |
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123 |
+
"text": "यस्मिन् जगत्सर्वमिदं प्रतिष्ठितं\nयस्माज्जगत्सर्वमिदं प्रसूयते।\nयत्प्रेरितं लोकमिदं प्रवर्तते\nतद्ब्रह्म तत्त्वं परमं विजानत॥",
|
124 |
+
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|
125 |
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|
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|
128 |
+
},
|
129 |
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{
|
130 |
+
"text": "मन्दं मन्दं नुदति पवनश्चानुकूलो यथा त्वं\nआलोकः प्रियतम इव प्रेक्���ते त्वां सुमेरो।\nछायेवानुगतमनुगा दाक्षिणात्येन गङ्गा\nशृङ्गैः पश्य प्रणयभृतः प्रस्थमाश्लिष्यतीव॥",
|
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135 |
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|
136 |
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137 |
+
"text": "सरसिजनयने सरसिजहस्ते\nधवलतरांशुकगन्धमाल्यशोभे।\nभगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे\nत्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम्॥",
|
138 |
+
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|
139 |
+
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|
140 |
+
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|
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+
"source": "Generated"
|
142 |
+
},
|
143 |
+
{
|
144 |
+
"text": "करुणया परया परिपूर्णो\nभवतु मे हृदये परमात्मा।\nकमलनयन कमलासन\nकमलवासिनि देहि कृपां मे॥",
|
145 |
+
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146 |
+
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147 |
+
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|
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+
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|
149 |
+
},
|
150 |
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{
|
151 |
+
"text": "यस्योदये प्रशमितं तम उल्वणं वै\nलोकस्य यस्य च निमज्जति यत्र लोकः।\nसूर्यं तमेव शरणं व्रज भूतनाथं\nकिं वा बहुप्रलपितैः शृणु तत्त्वमेतत्॥",
|
152 |
+
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|
153 |
+
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|
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+
"pattern": "TGJTGJTGLGG",
|
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+
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|
156 |
+
},
|
157 |
+
{
|
158 |
+
"text": "शान्तं पदं तत्परमं विशोकं\nज्ञात्वा मुनिः शाम्यति नान्यथा हि।\nतस्मिन् स्थितो न विषीदते क्वचित्\nज्ञात्वा तमेवं विजहाति दुःखम्॥",
|
159 |
+
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|
163 |
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|
164 |
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{
|
165 |
+
"text": "प्रभो शङ्कर स्वामिन् विश्वनाथ महेश्वर।\nगिरीश नीलकण्ठ त्वं गङ्गाधर वृषध्वज॥",
|
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|
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|
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172 |
+
"text": "गच्छन्ति पुण्यपुरुषाः परलोकमार्गं\nतिष्ठन्ति पापरसिकाः पतने निमग्नाः।\nआकाशगामिपतगाः खलु वायसाद्याः\nयद्वत्तथैव हि नराः सुकृतैर्विहीनाः॥",
|
173 |
+
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|
174 |
+
"topic": "ज्ञानम्",
|
175 |
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|
176 |
+
"source": "Traditional"
|
177 |
+
},
|
178 |
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{
|
179 |
+
"text": "सत्यं ज्ञानमनन्तं च ब्रह्म योऽभ्यस्यते नरः।\nस याति परमां सिद्धिं देवानामपि दुर्लभाम्॥",
|
180 |
+
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|
181 |
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|
182 |
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|
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+
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|
184 |
+
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|
185 |
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|
186 |
+
"text": "यदा यदा धर्मग्लानिर्भवति भारत।\nअभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥",
|
187 |
+
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|
188 |
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|
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|
191 |
+
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|
192 |
+
{
|
193 |
+
"text": "अनेकाश्चिन्ताभिः क्षयमुपगतस्यापि वपुषो\nन मुञ्चन्त्यापन्नं मुहुरपि कृपणं विधिवशात्।\nअलभ्यैः कामैर्यैः कृतमिह जनैर्दुःखमधिकं\nन जाने को हेतुर्विषयविषमूर्च्छातुरमनाम्॥",
|
194 |
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|
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|
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|
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+
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200 |
+
"text": "सरसिजनयने सरसिजहस्ते\nधवलतरांशुकगन्धमाल्यशोभे।\nभगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे\nत्रिभुवनभूतिकरि प्���सीद मह्यम्॥",
|
201 |
+
"meter": "द्रुतविलम्बितम्",
|
202 |
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|
203 |
+
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+
"source": "Generated"
|
205 |
+
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|
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+
{
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207 |
+
"text": "अहो विचित्रा खलु कर्मगाथा\nन कर्मणा बध्यति कर्मयोगी।\nन कर्मणा मुच्यति कर्महीनः\nतथापि कर्मैव हि मोक्षमार्गः॥",
|
208 |
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|
209 |
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|
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+
"source": "Generated"
|
212 |
+
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|
213 |
+
{
|
214 |
+
"text": "नमः शिवाय प्रशिवाय साम्बे\nनमः शिवायाद्भुतकर्मणे च।\nनमः शिवायाप्रतिरूपरूपे\nनमः शिवायामितविक्रमाय॥",
|
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+
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217 |
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|
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+
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|
219 |
+
},
|
220 |
+
{
|
221 |
+
"text": "आकाशे विहरति विहङ्गः पक्षयुक्तो\nभूमौ चैव प्रचलति नरो वाहनैर्वा पदाभ्याम्।\nअम्भोधौ तु प्लवति सततं नौर्नरैः प्रेरिता सा\nज्ञानेनैव प्रविशति जनो मोक्षमार्गं सुदुर्गम्॥",
|
222 |
+
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223 |
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|
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|
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+
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226 |
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|
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+
"text": "अहो विचित्रा खलु कर्मगाथा\nन कर्मणा बध्यति कर्मयोगी।\nन कर्मणा मुच्यति कर्महीनः\nतथापि कर्मैव हि मोक्षमार्गः॥",
|
229 |
+
"meter": "उपेन्द्रवज्रा",
|
230 |
+
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|
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233 |
+
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|
234 |
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235 |
+
"text": "अनेकाश्चिन्ताभिः क्षयमुपगतस्यापि वपुषो\nन मुञ्चन्त्यापन्नं मुहुरपि कृपणं विधिवशात्।\nअलभ्यैः कामैर्यैः कृतमिह जनैर्दुःखमधिकं\nन जाने को हेतुर्विषयविषमूर्च्छातुरमनाम्॥",
|
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|
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|
241 |
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242 |
+
"text": "कनकरुचिरवर्णा कामिनीकामरूपा\nकमलनयनकान्ता कोमलाङ्गी किशोरी।\nकलितललितवेषा कोकिलालापवाणी\nकलयतु कुशलं नः कालिका कामरूपा॥",
|
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|
247 |
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"text": "करुणया परया परिपूर्णो\nभवतु मे हृदये परमात्मा।\nकमलनयन कमलासन\nकमलवासिनि देहि कृपां मे॥",
|
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252 |
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|
254 |
+
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255 |
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|
256 |
+
"text": "सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयान्न ब्रूयात् सत्यमप्रियम्।\nप्रियं च नानृतं ब्रूयादेष धर्मः सनातनः॥",
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+
"text": "यस्मिन् जगत्सर्वमिदं प्रतिष्ठितं\nयस्माज्जगत्सर्वमिदं प्रसूयते।\nयत्प्रेरितं लोकमिदं प्रवर्तते\nतद्ब्रह्म तत्त्वं परमं विजानत॥",
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"text": "गच्छन्ति पुण्यपुरुषाः परलोकमार्गं\nतिष्ठन्ति पापरसिकाः पतने निमग्नाः।\nआकाशगामिपतगाः खलु वाय���ाद्याः\nयद्वत्तथैव हि नराः सुकृतैर्विहीनाः॥",
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+
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+
"text": "आयाताः सकलार्थसिद्धिसमये संप्राप्तकल्पद्रुमाः\nप्राप्ताः शीतलचन्द्रिकासुखभुवो निर्वाणवापीसमाः।\nहे नाथ त्वदपाङ्गलब्धसुकृतास्त्वत्सेवकाः सेवकाः\nत्वां वीक्ष्य प्रणमन्ति ये परमिदं तेषां किमाश्चर्यतः॥",
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"text": "सत्यं ज्ञानमनन्तं च ब्रह्म योऽभ्यस्यते नरः।\nस याति परमां सिद्धिं देवानामपि दुर्लभाम्॥",
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291 |
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"text": "यस्योदये प्रशमितं तम उल्वणं वै\nलोकस्य यस्य च निमज्जति यत्र लोकः।\nसूर्यं तमेव शरणं व्रज भूतनाथं\nकिं वा बहुप्रलपितैः शृणु तत्त्वमेतत्॥",
|
292 |
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293 |
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"topic": "प्रकृतिः",
|
294 |
+
"pattern": "TGJTGJTGLGG",
|
295 |
+
"source": "Traditional"
|
296 |
+
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297 |
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298 |
+
"text": "शान्तं पदं तत्परमं विशोकं\nज्ञात्वा मुनिः शाम्यति नान्यथा हि।\nतस्मिन् स्थितो न विषीदते क्वचित्\nज्ञात्वा तमेवं विजहाति दुःखम्॥",
|
299 |
+
"meter": "इन्द्रवज्रा",
|
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+
"topic": "ज्ञानम्",
|
301 |
+
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|
302 |
+
"source": "Traditional"
|
303 |
+
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|
304 |
+
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305 |
+
"text": "सूर्यस्य तेजो नलिनीं विकासयत्\nचन्द्रस्य शीतांशुरपि प्रमोदयेत्।\nवाणी सुधासिक्तमिवार्थमुत्तमं\nप्रीणाति चेतः सुधियां सदैव हि॥",
|
306 |
+
"meter": "वसन्ततिलका",
|
307 |
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|
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+
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309 |
+
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|
310 |
+
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|
311 |
+
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312 |
+
"text": "अहो विचित्रा खलु कर्मगाथा\nन कर्मणा बध्यति कर्मयोगी।\nन कर्मणा मुच्यति कर्महीनः\nतथापि कर्मैव हि मोक्षमार्गः॥",
|
313 |
+
"meter": "उपेन्द्रवज्रा",
|
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+
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|
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+
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317 |
+
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|
318 |
+
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319 |
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"text": "मातः पृथ्वि! पितः पवन! सुहृदापः! बान्धवाग्ने! सखे व्योमन्!\nभ्रातः सूर्य! प्रणयिनि शशिन्! सर्वमेतत् प्रसादात्।\nयुष्माकं परिपालनेन विरतं कालेन जीवाम्यहं\nयुष्मासु प्रतिपादयामि नियतं देहं प्रसादीकुरुत॥",
|
320 |
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|
321 |
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323 |
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|
324 |
+
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|
325 |
+
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326 |
+
"text": "नमः शिवाय प्रशिवाय साम्बे\nनमः शिवायाद्भुतकर्मणे च।\nनमः शिवायाप्रतिरूपरूपे\nनमः शिवायामितविक्रमाय॥",
|
327 |
+
"meter": "भुजङ्गप्रयातम्",
|
328 |
+
"topic": "प्रकृतिः",
|
329 |
+
"pattern": "YYYJG",
|
330 |
+
"source": "Traditional"
|
331 |
+
},
|
332 |
+
{
|
333 |
+
"text": "धर्मो रक्षति रक्षितः\nसत्यं वदति सर्वदा।\nज्ञानं ददाति विनयं\nविद्या ददाति पात्रताम्॥",
|
334 |
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|
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+
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|
338 |
+
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|
339 |
+
{
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340 |
+
"text": "यदा यदा हि धर्मस्य\nग्लानिर्भवति भारत।\nअभ्युत्थानमधर्मस्य\nतदात्मानं सृजाम्यहम्॥",
|
341 |
+
"meter": "अनुष्टुभ्",
|
342 |
+
"topic": "ज्ञानम्",
|
343 |
+
"pattern": "LLGLGLLG",
|
344 |
+
"source": "Traditional"
|
345 |
+
},
|
346 |
+
{
|
347 |
+
"text": "कमलनयनपादं कामकोटिप्रकाशं\nसकलभुवनवन्द्यं सर्वलोकैकनाथम्।\nअमलविमलरूपं चन्द्रचूडं त्रिनेत्रं\nभजत भवभयध्नं भास्वरं भूतनाथम्॥",
|
348 |
+
"meter": "मालिनी",
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349 |
+
"topic": "धर्मः",
|
350 |
+
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|
351 |
+
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|
352 |
+
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|
353 |
+
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|
354 |
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