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प्रसिद्द कबीर अध्येता, पुरुषोत्तम अग्रवाल का यह शोध आलेख, उस रामानंद की खोज करता है
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, ,
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किन्तु आधुनिक पांडित्य, न सिर्फ़ एक ब्राह्मण रामानंद के, एक जुलाहे कबीर का गुरु होने से, बल्कि दोनों के समकालीन होने से भी, इनकार करता है
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उस पर, इन चार कवियों का गहरा असर है
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,
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इसे कई बार, मंचित भी किया गया है
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,
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यहाँ प्रस्तुत है, हिन्दी कवि कथाकार, तेजी ग्रोवर के अंग्रेज़ी के मार्फ़त किए गए अनुवाद के कुछ अंश
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, ,
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मूल से, अंग्रेज़ी में लाने का काम, मीना कंदसामी ने किया है, और अंग्रेज़ी से हिन्दी अनुवाद, गिरिराज किराडू ने
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, , , ,
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दूसरी तरफ़, साक्षात्कार में वे, सुंदर के विरूद्ध, अपनी रणनीति के बारे में बात करते हैं
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, , ,
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उस्ताद बिस्मिल्लाह खान, भारतीय संगीत ही नहीं, समूचे कला संसार में, एक विलक्षण उपस्थिति रहे
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, , ,
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अपने व्यक्तित्व, और वाद, दोनों से वे, शास्त्रीय संगीत में, एक नए टाईप थे
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, , , ,
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उन पर दो हिन्दी कवियों का गद, इस फ़ीचर में शामिल है
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,
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यतीन्द्र मिश्र का, सुर की बारादरी, इस नाम से, पेंग्विन यात्रा से शीघ्र प्रकाश्य पुस्तक से लिया गया है, जो उनकी कला, स्थानीय परम्परा, उनके व्यक्तित्व को एक साथ पढ़ती है
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, , , , , ,
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उस्ताद को, ट्रिब्यूट की तरह, लिखा गया, व्योमेश शुक्ल का गद्य, उनकी कला को, सांस्कृतिक राजनीति के, प्रतिरोध के, संकेतों की तरह देखता है
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, , , , , , ,
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इस अंक से हम, एक नया खंड उन कला रूपों पर आरंभ कर रहे हैं, जिन्हें लोक प्रिय, या पॉपुलर कहा जाता है
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, , ,
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बस इतना पता है, कि उस ज़माने में, एशिया, यूरोप, अफ़्रीका, और शायद अमेरिका महाद्वीप भी, आपस में जुड़े हुए थे
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, , , , , ,
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यूरोप का बायाँ हिस्सा, अफ़्रीका के दाहिने में, और आस्ट्रेलिया का ऊपरी पश्चिमी किनारा, आज के तमिलनाडु के बगल में था
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, , ,
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मतलब कि, यू एन ओ जो सपना हमारे भविष्य के लिए देखता है, वो हमारे इतिहास में, पहले ही पूरा हो चुका है
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मतलब कि, भाषा एक एक्शन नहीं, प्रकृति को देखकर दिया गया, हमारा रिएक्शन मात्र है
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, , ,
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सूरज को देखकर, हर प्रजाति के मनुष्य के मुँह से, रा ही निकला
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इसलिए, मिस्र में भी, सूर्य भगवान, रा हैं, और सिंधु के इस पार भी, सूर्यवंशी भगवान का नाम, राम है
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, , , , , ,
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उसमें कहा गया है कि, एक ज़माना था, जब पूरी दुनिया, बाबिलू नाम के एक शहर में बसती थी, और एक ही भाषा बोलती थी
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इस शहर के लोगों ने, एक बार, एक बड़ी सी मीनार बनाने की कोशिश की, इतनी ऊँची, कि जिस पे चढ़ के, इंसान भगवान के पास पहुँच जाए
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, , , , ,
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उसके दोस्त, प्रेमिकाएँ, और रिश्तेदार, उसे इसी नाम से बुलाते थे, और वो भी, अक्सर समझ जाता था, कि क्वैं, उसी को संबोधित है
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क्वैं की उम्र, करीबन अठारह साल रही होगी, यानि कि, वो नवकिशोर था, आज का टीनेजर
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, , , ,
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शिकार करना अनिवार्य था, लेकिन इस मामले मे, क्वैं, थोडा कमज़ोर था
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, , ,
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उसे, जंगली जान वरों से डर लगता था
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,
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मतलब कि, क्वैं सिर्फ़ मछलियाँ पकड कर, बहुत दिन चैन से नहीं रह सकता था
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, ,
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उसके अंदर, जाने कहाँ से, एक अजीब सा गुस्सा पनपने लगा था
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, ,
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कबीले में भी झगड़े बढ़ने लगे, और क्वैं के मूक समर्थक, यानि कि, कबीले के बड़े लोग भी, अब धीरे धीरे, उससे कटने लगे
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, , , , ,
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वो रात को देर तक जागता, झाड़ियों की आवाज़ में, नए नए स्वर सुनता, और उन्हें जोड़कर, कुछ बनाने की कोशिश करता
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, , , ,
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पर झाड़ियों से आई एक आवाज़, दुबारा नहीं आती, हर बार, नई तरह का स्वर निकलता, और क्वैं उन्हें याद करते करते, जोड़ते जोड़ते परेशान हो जाता
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, , , , ,
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जिन दिनों बारिश होती, क्वैं की ये उलझन, और बढ़ जाती
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, ,
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इसलिए अब वो, दिन भर आवाज़ें इकठ्ठी करता फिरता
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,
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जहाँ भी कोई नई ध्वनि सुनता, तुरंत उसे दोहराता
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,
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नदी किनारे, दो काले गोल पत्थर थे, जो एक दूसरे से रगड़कर, वही आवाज़ दे रहे थे
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, , ,
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क्वैं बड़ी देर तक वहाँ बैठा, उनको र गड़ता रहा, उसके सामने एक खज़ाना खुल गया था
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पत्थरों में वो आवाज़ें कैद थीं, जिन्हें वो, दुनिया भर में ढूँढता फिरता था
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अब, क्वैं का दिन, दो हिस्सों में बँट गया
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इसके बाद वो, आज की आवाज़ वाले पत्थरों को, अलग अलग गुच्छों में बाँधता, और उन्हें अपने कँधे पर लटका लेता
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कई दिन तो ऐसा होता, कि शाम को, कबीले की ओर लौटते वक़्त, उसके पास, पत्थरों के, पचास से ज़्यादा समूह होते
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, , , , ,
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कुछ लोगों को तो डर था, कि क्वैं, किसी काले देवता की आराधना करता है
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, ,
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इस बीच, क्वैं ने अपने कबीले वालों के साथ, खाना बिल्कुल ही बंद कर दिया
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, ,
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अब वो कच्ची मछली, और फलों पर ही ज़िंदा रहता
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,
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महीने बीतते गए, और क्वैं का पत्थरों वाला खज़ाना, बड़ा होता गया
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, ,
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खूँ बेढंग से उन्हें बजाता, और अजीब सी आवाज़ सुनकर, खूब हँसता
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, ,
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कभी कभी, क्वैं गुस्से में पत्थर उठाकर, फेंक भी देता
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, ,
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ऐसे ही एक झगड़े में, एक दिन, क्वैं ने खूँ को मार डाला
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, ,
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गुस्से में आकर उसने, ज़ोर ज़ोर से चिल्लाना शुरु कर दिया
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,
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खूँ का गुस्सा, अभी भी हरा था, और वो फिर से, क्वैं पे ही झपट पड़ा
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, , ,
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लेकिन इस बार, क्वैं के हाथ में, वो बारिश वाले पत्थर थे, काले गोल पत्थर, जो टप टप करते थे
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, , , ,
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खूँ के नज़दीक आते ही, ये पूरी ताकत से, उसके माथे पर जा पड़े
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, ,
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शायद, एक ही वार में खूँ, अंधा हो गया
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उसके बाद क्वैं ने, नुकीले पत्थर उठा कर, खूँ की एक एक नस काट डाली
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तीन कबीलेवाले, बीच में आए, लेकिन वो भी मारे गए
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सुबह होते होते पूरा कबीला खाली हो गया
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मान लिया गया, कि क्वैं, सचमुच, रात की ही आराधना करता हैं
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उसके अंदर कोई काली शक्ति आ गई, जो पूरे कबीले को खाने पे आमादा थी
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जिन पत्थरों पे खून लग गया था, उन्हें वो, डैन्यूब में धो लाया
100.181152
18.264034
69.894791
59.790459
2.711208
, ,
0.999261
30.294315
3.696515
sample_4563.wav
कबीले में अब अजीब सी शांति थी, सिर्फ़ क्वैं और उसके पत्थर ही बोलते थे
104.649193
18.083652
68.716988
59.830799
2.669336
,
0.999271
32.336765
4.205387
sample_4564.wav
पर उसे ऐसे ही अच्छा लगता था
103.339455
17.407282
71.593933
59.817616
2.57649
0.999279
31.527771
4.010701
sample_4565.wav
उन्होंने, अपनी राग अदायगी में, जिस एक चीज़ पर सर्वाधिक मेहनत की है, वह उनका मींड़ का काम है
102.729767
26.300961
66.651436
59.796474
2.53451
, , ,
0.999088
29.839424
4.111688
sample_4566.wav
प्रसिद्ध संगीत विद्वान, चेतन करनानी लिखते हैं, बिस्मिल्ला खान की कला की सबसे बड़ी खूबी यह है, कि उनके ध्वनि विन्यास की शुद्धता, उत्तेजना जगाती है
104.157471
18.638943
65.646278
59.747684
2.367105
, , , ,
0.999311
31.52076
4.239198
sample_4567.wav
उनकी सांगीतिक प्रतिभा, अप्रतिम है
102.802116
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1.601602
,
0.99933
29.632185
3.787411
sample_4568.wav
वे, राग का विस्तार करने, उसकी संरचना के ब्यौरों को उभारने में, हमेशा बेहद सधे हुए, और जागरूक रहे हैं
104.673065
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2.651679
, , , ,
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4.115027
sample_4569.wav
बिस्मिल्ला खान की मींड़, जो उनकी वादन कला का सबसे सशक्त पक्ष बन गयी है, देखने लायक है
97.036888
19.474274
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59.703712
2.643019
, ,
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32.060944
4.246523
sample_4570.wav
वादन के समय, मींड़ लेते वक्त, वे सुरों में जो मोड़, घुमाव, और दैवीय स्पर्श महसूस कराते हैं, वह सुनने वाले को अपूर्व अनुभव देता है
101.217186
18.201096
61.450047
59.826099
2.795248
, , , , ,
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29.431206
4.119326
sample_4571.wav
लगता है कि, बिस्मिल्ला खान, मींड़ लेते वक्त, शहनाई नहीं बजा रहे, बल्कि शरीर के किसी घाव पर, मरहम कर रहे हैं
97.715637
19.440405
63.628208
59.807766
2.674897
, , , , ,
0.99937
31.698114
4.138092
sample_4572.wav
शहनाई में मींड़ भरने की यह दिव्यता, उनकी कला यात्रा का सबसे प्रमुख बिन्दु बन गयी है
100.188461
18.723928
59.128323
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2.637192
,
0.999191
32.210854
4.267281
sample_4573.wav
शहनाई में मींड़ के काम पर चेतन करनानी की यह बात, बिस्मिल्ला खान के उस घनघोर रियाज़ की ओर इशारा करती है
98.679085
18.56329
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2.716049
,
0.998912
31.15958
4.214036
sample_4574.wav
यदि एक सुर का कोई कण सही पकड़ में आ गया, तो समझो कि, सारा संगीत, तुम्हारी फूँक में उतर आयेगा
103.207199
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59.688915
2.715066
, , ,
0.999114
30.961964
4.228889
sample_4575.wav
सा, और रे का फ़र्क करने की तमीज़, उन्हें मींड़ को बरतने के व्याकरण के सन्दर्भ में ही, बचपन से सिखायी गयी थी
102.283676
19.116627
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58.1768
2.871088
, , ,
0.999114
32.510185
4.090035
sample_4576.wav
संगीत के व्या करण का अनुशासन मिला हुआ है, और पूरब की लोक लय व देसी धुनें, शहनाई के प्याले में आकर, ठहर गयी हैं
102.165207
19.770851
66.749161
58.994106
2.730375
, , ,
0.999449
30.655373
4.179624
sample_4577.wav
वह इसी बात की ओर बार बार इशारा करती हैं, कि संगीत के मींड़, व तान की तरह ही, उनके जीवन में कला और रस, एक सुर से दूसरे सुर तक, बिना टूटे हुए पहुँचे हैं
102.884132
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63.377308
59.571667
3.011906
, , , , ,
0.999434
30.024975
4.168491
sample_4578.wav
वे एक साधारण इन्सान हैं, जिनके भीतर, आपको अनायास ही, सहज मानवीयता के दर्शन होते हैं
102.192825
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2.328966
, , ,
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30.890257
4.099835
sample_4579.wav
ये खान साहब, कोई दूसरे हैं
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2.37037
,
0.99883
31.701591
4.084192
sample_4580.wav
उनसे मिलना, मोमिन के उस शेर से मिलना है, जहाँ वे यह दर्ज करते हैं, तुम मेरे पास होते हो, जब कोई दूसरा नहीं होता
101.011894
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2.8315
, , , ,
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4.07504
sample_4581.wav
यह कोई दूसरा न होने जैसा व्यक्ति, एक उस्ताद हैं, जो प्रेम में पगे हुए हैं
100.12516
18.894022
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59.763981
2.700824
, ,
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32.473282
4.13011
sample_4582.wav
उन्हें काशी से, बेपनाह मुहब्बत है
98.879784
18.641945
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1.881246
,
0.999341
29.197838
4.20695
sample_4583.wav
वे शहनाई को, अपनी प्रस्तुति का एक वाद्य यन्त्र नहीं मानते, बल्कि, उसे सखी, और महबूबा कहते हैं
97.810638
15.660625
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2.397773
, , , ,
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30.503391
3.923276
sample_4584.wav
अपनी पत्नी के गुजर जाने के बाद से, उनकी यह महबूबा ही, उनके सिरहाने बिस्तर पर, साथ सोती है, और अपने प्रेमी को दो एक क्षण, खुद की खुशी, बटोरने का बहाना देती है
97.917343
17.165909
64.875946
59.761738
2.896129
, , , , , ,
0.999528
30.762383
4.173754
sample_4585.wav
वे आज भी, बचपन में कचौड़ी खिलाने वाली, कुलसुम को, पूरी व्यग्रता से याद करते हैं
98.622086
18.801443
66.093803
59.883186
2.763385
, , ,
0.999689
32.157677
4.199634
sample_4586.wav
अपने बड़े भाई, शम्सुद्दीन का जब भी ज़िक्र करते हैं, भीतर का जज़्बात, दोनों आँखों की कोरों में, पानी बनकर ठहर जाता है
97.017067
16.635471
69.723892
59.808571
2.83746
, , , ,
0.999194
30.515274
3.998945
sample_4587.wav
हड़हा सराय से अलग वे कहीं जाना नहीं चाहते, फिर वो लाहौर हो, या लन्दन, कोई फ़र्क नहीं पड़ता
97.594696
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66.472473
59.781364
2.828283
, , ,
0.999192
30.796394
4.213479
sample_4588.wav
अपने भरे पूरे कुनबे के साथ रहना, और पाँचों वक्त की नमाज़ में संगीत की शुद्धता को मिला देना, उन्हें बखूबी आता है
97.328323
16.276974
62.588394
59.509663
2.844444
, ,
0.999687
32.298912
4.298162
sample_4589.wav
गंगा के पानी के लिये, उनकी श्रद्धा देखते बनती है
107.777016
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58.033119
2.314815
,
0.999278
32.300171
4.002593
sample_4590.wav
देश में, जब भी कोई फ़साद होता है, तो हर एक से उस्ताद कहने लगते हैं, कि भैया, गंगा के पानी को छू लो, और सुरीले बन जाओ, फिर लड़ नहीं पाओगे
94.36705
19.657736
62.936855
59.755863
3.127807
, , , , , ,
0.999738
31.500275
4.202876
sample_4591.wav
वे प्रेम को इतने नज़दीक से महसूस करते हैं, कि प्रेम का वितान रचने वाले, रागों के पीछे पगलाये से घूमते हैं
95.813438
20.115744
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2.736873
, ,
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32.840733
4.285759
sample_4592.wav
अपने कमरे में जब बैठते हैं, तब ऊपर आसमान की ओर ताकना, उनकी फ़ितरत में शामिल है
95.502754
18.807196
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2.627258
, ,
0.999815
29.831087
4.250515
sample_4593.wav
लगता है, उनकी शहनाई के सात, सुरों ने ही, ऊपर सात आसमान रचा है
91.749046
20.665051
61.86525
59.794777
2.50171
, , ,
0.99937
31.202797
4.211152
sample_4594.wav
खुदा और सुर, संगीत और अज़ान, जैसे उनके शरीर का पानी, और रूह है
100.165512
22.776052
60.250881
59.096989
2.376311
, , ,
0.999273
31.291811
3.967604
sample_4595.wav
उनका पूरा शरीर, और व्यक्तित्व ही, जैसे लय का बागीचा है, जिसे उन्होंने, ढेरों घरानों से, अच्छे अच्छे फूल तोड़कर, सजाया हुआ है
96.708755
19.544159
64.312958
59.732479
2.411714
, , , , , ,
0.99941
28.986427
4.101957
sample_4596.wav
इस बागीचे में आप शुरू से अन्त तक घूम आइये, तो दुनिया भर की सुन्दर चीज़ों के साथ, एक अनन्यता महसूस करेंगें
102.574287
17.734114
63.703365
59.680759
2.816039
, ,
0.998782
30.21014
3.99913
sample_4597.wav
कुल मिलाकर, किस्सा कोताह, यह कि, बिस्मिल्ला खान, सिर्फ़ एक कलाकार नहीं हैं, वह मानवीय गरिमा की सबसे सरलतम अभि व्यक्ति हैं
97.752075
17.088951
63.172779
59.552792
2.542477
, , , , ,
0.999624
31.578911
4.297971
sample_4598.wav
उनके साथ होने में, हमें अपने को, थोड़ा बड़ा करने में, मदद मिलती है
99.285965
16.709356
69.794701
59.773083
2.864496
, , ,
0.999179
32.551586
4.182034
sample_4599.wav
आधा गाँव उपन्यास की पहली पंक्ति है
97.397446
16.966434
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59.584366
1.975309
0.998884
25.940905
3.757998
sample_4600.wav
गाज़ीपुर के पुराने क़िले में, अब एक स्कूल है, जहां, गंगा की लहरों की आवाज़ तो आती है, लेकिन, इतिहास के गुनगुनाने, या ठंडी सांसें, लेने की आवाज़, नहीं आती
92.75164
16.606163
64.585602
59.830074
2.667388
, , , , , , , ,
0.999396
29.314173
4.055209
sample_4601.wav
अजीब सी पंक्ति नहीं है, गंगा की लहरें, जितनी मूर्त और यथार्थ हैं, इतिहास, उतना ही अमूर्त
97.457207
17.731335
65.373032
59.798145
2.351558
, , , ,
0.999114
30.851528
4.058297
sample_4602.wav
गंगा की लहरों का क्या कोई इतिहास नहीं, बिलाशक है, राही मासूम रज़ा, तीसरी ही पंक्ति में बता देते हैं
100.128418
14.396318
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2.57649
, , ,
0.999465
30.42137
4.277382
sample_4603.wav
गंदले पानी की इन महान धाराओं को, न जाने, कितनी कहानियाँ याद होंगी
98.097359
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2.317401
, ,
0.999161
30.926136
4.247788
sample_4604.wav
इस्लाम और अन्य किसी भी धार्मिक अस्मिता के संदर्भ में, यह देखा जा सकता है कि, वे इलाकाई आधार पर बदलती रहती हैं, और दूसरे, उनके भीतर के कई द्वंद देखे जा सकते हैं
97.308342
17.959412
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2.693603
, , , ,
0.99944
31.078625
4.124247
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राष्ट्रवाद सामुदायिक पहचान की तलाश में, आसानी से धर्म की ओर मुड़ता है
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