unique_key
int64 1
73.8k
| sanskrit_data
stringlengths 18
2.76k
| translation
stringlengths 0
1.3k
| minilm_embedding
listlengths 384
384
⌀ | bge_embedding
listlengths 1.02k
1.02k
⌀ |
---|---|---|---|---|
73,801 |
जयो नामेतिहासोऽयं श्रोतव्यो भूतिमिच्छता । राज्ञा राजसुतैश्चापि गर्भिण्या चैव योषिता ॥
| null | null |
|
73,802 |
स्वर्गकामो लभेत्स्वर्गं जयकामो लभेज्जयम् । गर्भिणी लभते पुत्रं कन्यां वा बहुभागिनीम् ॥
| null | null |
|
73,803 |
अनागतं त्रिभिर्वर्षैः कृष्णद्वैपायनः प्रभुः । संदर्भं भारतस्यास्य कृतवान्धर्मकाम्यया ॥
| null | null |
|
73,804 |
नारदोऽश्रावयद्देवानसितो देवलः पितॄन् । रक्षो यक्षाञ्शुको मर्त्यान्वैशंपायन एव तु ॥
| null | null |
|
73,805 |
इतिहासमिमं पुण्यं महार्थं वेदसंमितम् । श्रावयेद्यस्तु वर्णांस्त्रीन्कृत्वा ब्राह्मणमग्रतः ॥
| null | null |
|
73,806 |
स नरः पापनिर्मुक्तः कीर्तिं प्राप्येह शौनक । गच्छेत्परमिकां सिद्धिमत्र मे नास्ति संशयः ॥
| null | null |
|
73,807 |
भारताध्ययनात्पुण्यादपि पादमधीयतः । श्रद्दधानस्य पूयन्ते सर्वपापान्यशेषतः ॥
| null | null |
|
73,808 |
महर्षिर्भगवान्व्यासः कृत्वेमां संहितां पुरा । श्लोकैश्चतुर्भिर्भगवान्पुत्रमध्यापयच्छुकम् ॥
| null | null |
|
73,809 |
मातापितृसहस्राणि पुत्रदारशतानि च । संसारेष्वनुभूतानि यान्ति यास्यन्ति चापरे ॥
| null | null |
|
73,810 |
हर्षस्थानसहस्राणि भयस्थानशतानि च । दिवसे दिवसे मूढमाविशन्ति न पण्डितम् ॥
| null | null |
|
73,811 |
ऊर्ध्वबाहुर्विरौम्येष न च कश्चिच्छृणोति मे । धर्मादर्थश्च कामश्च स किमर्थं न सेव्यते ॥
| null | null |
|
73,812 |
न जातु कामान्न भयान्न लोभा;द्धर्मं त्यजेज्जीवितस्यापि हेतोः । नित्यो धर्मः सुखदुःखे त्वनित्ये; जीवो नित्यो हेतुरस्य त्वनित्यः ॥
| null | null |
|
73,813 |
इमां भारतसावित्रीं प्रातरुत्थाय यः पठेत् । स भारतफलं प्राप्य परं ब्रह्माधिगच्छति ॥
| null | null |
|
73,814 |
यथा समुद्रो भगवान्यथा च हिमवान्गिरिः । ख्यातावुभौ रत्ननिधी तथा भारतमुच्यते ॥
| null | null |
|
73,815 |
महाभारतमाख्यानं यः पठेत्सुसमाहितः । स गच्छेत्परमां सिद्धिमिति मे नास्ति संशयः ॥
| null | null |
Subsets and Splits
No community queries yet
The top public SQL queries from the community will appear here once available.